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अगर आपका बच्चा शर्मीला है

👤 Admin 1 | Updated on:14 May 2017 3:06 PM GMT

अगर आपका बच्चा शर्मीला है

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नीलम अरोड़ा

हम अकसर सुनते हैं कि बच्चों को सुनने की बजाय उन्हें देखना चाहिए। लेकिन आजकल माता और पिता बच्चे के विषय में दोनो चीजों को चाहते हैं। यह पहले की बात थी कि जब शर्मीला होना अच्छा समझा जाता था, लेकिन आज बच्चा अगर बहिर्मुखी न हो, जो दूसरों के साथ जल्दी घुलता मिलता न हो, ऐसे में बच्चे के लिए किसी प्रोफेशनल की मदद लेना जरूरी हो जाता है। अगर आपका बच्चा शर्मीला है ऐसी स्थिति में आप क्या करते हैं?

मुंबई अंधेरी के संजीवनी हॉस्पिटल में कंसल्टेंट साइाढsटिक्स डॉ. प्रसन्ना तेंदुलकर इस बात से सहमत हैं कि आजकल बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं, जो शर्मीले हों क्योंकि माता-पिता आजकल बच्चों की परवरिश पर खुद को पूरी तरह फोकस करते हैं। इस विषय में आर्टीमस हेल्थ इंस्टीट्यूट, गुड़गांव की डॉ. रचना सिंह का कहना है, 'आजकल बच्चे अलग माहौल में पलते हैं, संयुक्त परिवार के बिखरने के कारण उन्हें परिवार के दूसरे बच्चों का साथ नहीं मिलता, जिसके कारण उनका अपना कोई रोल मॉडल नहीं होता। अगर बच्चा सिंगल चाइल्ड है तो वह माता-पिता के साथ घर पर अकेला रहता है और ऐसी स्थिति में उसे अपने बड़े भाई या बहन की बातों की नकल करने, उसका अनुसरण करने और सामाजिक रूप से दूसरे बच्चे के बीच मिलने, जुलने का अवसर नहीं मिलता। एकल परिवार में बच्चे हमेशा माता-पिता से ही अटैच होते हैं, जिसके कारण जब वह बाहर दूसरे लोगों से मिलते जुलते हैं तो उनमें शर्मीलापन आ जाता है।'

इन दोनो विशेषज्ञों का यह मानना है कि आजकल भी कई ऐसे माता-पिता हैं जो इस बात की शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे उनके साथ सामाजिक रूप से मिक्सअप नहीं होते और स्कूल में भी वह दूसरे बच्चों के साथ बातचीत नहीं करते। इस विषय में डॉ. तेंदुलकर का कहना है कि हमें इस मुद्दे पर इस अंतर को समझना होगा कि कई ऐसे बच्चे हेते हैं जो स्वभाव से ही शर्मीले होते हैं और कई बच्चे दूसरों से मिलने जुलने में शर्म महसूस करते हैं और दोनो के बीच का अंतर तभी समझ में आता है जब उनमें शारीरिक रूप से डिप्रेशन या ज्यादा शर्मीलापन एक मनोवैज्ञानिक बीमारी के रूप में चिन्हित किया जाता है। डॉ. रचना सिंह शर्मीले बच्चे के माता-पिता को एक सलाह देती हैं कि अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा शर्मीला है तो इसे कतई नकारात्मक न समझें। क्योंकि अगर आप बच्चे से भी इस बात को बार-बार कहते हैं तो इससे बच्चा हतोत्साहित होता है और ऐसे बच्चे के लिए ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिसमें वह धीरे-धीरे खुद में बदलाव करके अपने व्यक्तित्व में बदलाव ला सके।

बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है। बच्चा धीरे-धीरे सीखता है और सीखने के द्वारा ही उसके लिए ऐसा माहौल तैयार किया जाता है कि जिसमें वह सीखने के लिए प्रोत्साहित हो सके। इसके लिए डॉ. सिंह पैरेंट्स को यह सलाह देती हैं कि उन्हें घर और स्कूल में ऐसा हेल्दी माहौल बनाना चाहिए जिसमें बच्चा अपने व्यक्तित्व का सही विकास कर सके। आज कड़ी स्पर्धा के इस दौर में किसी के लिए भी पीछे रहकर विकास कर पाना संभव नहीं है। बच्चे के ऊपर तो यह बात खासतौर पर लागू होती है। बच्चा अगर बैक बेंचर हो तो उसका शर्मीलापन परिवार के लिए ही नहीं बल्कि उसके जीवन को भी बहुत प्रभावित करता है, इसलिए बच्चे में शर्मीलेपन के लक्षण दिखने पर उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए माता-पिता को ही प्रयास करना चाहिए। डॉ. सिंह इसके लिए पैरेंट्स की भूमिका को सबसे अधिक महत्व देते हुए कहते हैं यदि माता-पिता सामाजिक तौरपर एक्टिव हैं तो ऐसी स्थिति में बच्चे भी इसी माहौल में बड़े होते हैं। इसके अलावा माता-पिता को भी इस तरह का माहौल बनाना चाहिए। जिसमें बच्चे दूसरे बच्चों के साथ खेलें और उन्हें नियमित नये-नये लोगों से उनका परिचय करायें और नयी-नयी स्थितियों से उन्हें दो चार होना सिखाएं। बच्चे को यदि फुटबॉल, टेनिस खेलना पसंद है तो उसे ग्रुप में इन सारी एक्टिविटी को करने की सीख दें, इससे उसे अपनी टीम को बनाने और दूसरों के साथ संवाद स्थापित करने की पहल के लिए बल मिलता है।

डॉ. सिंह के अनुसार माता-पिता चाहें तो इसमें बहुत कुछ कर सकते हैं, बस जरूरत इस बात ही है कि वह बच्चे की परवरिश करते-करते हेलीकॉप्टर पैरेंट्स न बनें और न ही 24 घंटे उसके जीवन को नियत्रित करने की सोचें। बच्चों को स्पेस दें, क्योंकि स्पेस द्वारा ही वह अपनी पसंद और नापसंद को बनाते हैं। नहीं तो बच्चे के माता
-पिता और दोस्त इसके लिए बच्चे को ही जिम्मेदार "हराने लगते हैं। अपने बच्चे को उसके कमरे में समय गुजारने के लिए कहें या उसके साथ उसके कमरे में बै"कर थोड़ा वक्त गुजारें ताकि वह अपनी बातों को दूसरों से शेयर करना सीखे। बच्चे को नये माहौल से परिचित कराएं और उसे खुद पहल करना सिखाएं। उसे अपने छोटे-छोटे काम स्वयं करने दें
, उस पर जिम्मेदारी डालें और उसे खुद से काम करने का महत्व समझाएं। घर में यदि बच्चों की पार्टी आयोजित कर रहे है तो उसकी प्लानिंग या मैन्यू उसे खुद निर्धारित करने के लिए कहें ताकि वह स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम हो सके। बच्चा यदि शर्मीला है तो उस पर गुस्सा न हें बल्कि उसके लिए एक ऐसा माहौल बनाएं जिसमें उसके व्यक्तित्व का विकास अच्छी तरह हो सके। क्योंकि आजकल माता
-पिता के पास समय ही नहीं होता, कई माता-पिता अपने बच्चों के बारे में कई ऐसी बातें नहीं जानते जिन्हें जानना उनके लिए जरूरी होता है। ऐसी स्थिति में कई पैरेंट्स ऐसे होते हैं, जो खुद ही दिशा भ्रमित होते हैं, उन्हें खुद ही काउंसलर की सलाह की जरूरत होती है। अगर बच्चा खेलने में अच्छा है तो उस पर पढ़ाई का बोझ लादने की बजाय उसे स्पोर्ट्स की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। इससे उसका आत्मविश्वास तो मजबूत होता ही है, वह सामाजिक रूप से दूसरे बच्चों के साथ आसानी से अडजेस्ट करना सीखने लगता है।

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