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सख्ती की जरूरत

👤 Veer Arjun | Updated on:12 April 2024 6:06 AM GMT

सख्ती की जरूरत

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सरकार से सब्सिडी पर जमीन हासिल करके बनने वाले निजी अस्पतालों पर सुप्रीम कोर्ट का तीखी टिप्पणी करते हुए यह कहना कि ये अस्पताल सब्सिडी पर जमीन लेकर इमारत बना लेते हैं किन्तु गरीब तबके के लिए बेड रिजर्व करने के वादों पर अमल नहीं करते, मात्र शिकायती लहजा बनकर रह गया है। यह समस्या कोईं हाल में नहीं सामने आईं है।

यह तो निजी अस्पतालों की प्रावृत्ति बन चुकी है। इस प्रावृत्ति पर कुठाराघात के लिए न तो केन्द्र व राज्य सरकारों ने वुछ किया और न ही अदालतों ने। निजी अस्पतालों की इस प्रावृत्ति पर संसद और विधानमंडलों में कईं बार सवाल उठाए जा चुके हैं किन्तु सरकारों की तरफ से कोईं ऐसी कार्रवाईं नहीं हुईं जिससे कि निजी अस्पताल अपने वादों को निभाने के लिए मजबूर हों। ऐसा भी नहीं है कि निजी अस्पतालों के बेईंमानीपूर्ण व्यवहार के प्राति अदालतों में शिकायतें नहीं हुईं हैं, किन्तु वुल मिलाकर अदालतें और सरकार दोनों के उदासीन रवैयों ने इन निजी अस्पतालों को और भी ढीठ बना दिया है।

असल में जो निजी अस्पताल सब्सिडी की जमीनों पर बनाए जाते हैं, उसके निर्माता तो बहुत कम संख्या में रह गए हैं जो अस्पतालों का संचालन करते हैं। अब तो निजी अस्पतालों का प्राबंधन कोईं और संभालता है और उसे इस बात की कोईं परवाह नहीं कि अस्पताल की नींव जिस जमीन पर है उसे हासिल करने से पहले क्या-क्या वादे किए जा चुके हैं। इसके अलावा एक और समस्या है और वह है अस्पताल प्राशासन के लोगों की सरकार और प्राशासन में जबरदस्त पकड़। अस्पतालों के संचालक इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि उनका तब तक कोईं वुछ नहीं बिगाड़ सकता जब तक उनके प्राति सरकार और अधिकारी वर्ग की विशेष वृपा दृष्टि बनी रहती है। यही कारण है कि निजी अस्पतालों का कार्यं सेवा भाव नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा धन कमाना है। असल में यह तथ्य सर्वविदित है कि जब तक सरकार अच्छे और प्री सुपर स्पेशलिस्ट वाले अस्पतालों के निर्माण नहीं होंगे तब तक निजी अस्पताल आम जनता का शोषण करते रहेंगे।

बहरहाल अब यदि सुप्रीम कोर्ट गंभीरता से निजी अस्पतालों की चालबाजियों पर नियंत्रण करना चाहे तो उसे दृढ़तापूर्वक वुछ निजी अस्पताल के संचालकों के खिलाफ न सिर्फ कार्रवाईं करनी चाहिए बल्कि इनके अस्पतालों के लाइसेंस भी कैंसिल कर दिए जाने चाहिए। ऐसा करने से ही निजी अस्पताल अपने रवैए में बदलाव कर सकते हैं अन्यथा जैसा वे पहले करते थे, वैसा ही करते रहेंगे। निजी अस्पतालों के संचालक पूरी तरह संवेदनहीन हैं, इसलिए सरकार और अदालतों दोनों को इस समस्या से निपटने के लिए वृत संकल्पित होना पड़ेगा।

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