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बेईंमानी का लाइसेंस नहीं

👤 Veer Arjun | Updated on:14 April 2024 4:30 AM GMT

बेईंमानी का लाइसेंस नहीं

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इस्पात मंत्रालय तथा मेघा इंजीनियरिग इन्प्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के अधिकारियों पर 315 करोड़ रुपए की एनआईंएसपी परियोजना में कथित भ्रष्टाचार को लेकर केंद्रीय जांच ब्यूरो यानि सीबीआईं ने मामला दर्ज करने की जानकारी दी तो एक बात और सामने आईं कि मेघा ने भाजपा को करोड़ों रुपए के चुनावी बांड खरीद कर चंदा दे रखा है। सीबीआईं की इस कार्रवाईं से एक बात तो स्पष्ट है कि चुनावी बांड खरीदने से किसी भी कंपनी को भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। मेघा तो चुनावी बांड खरीदने वाली दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है।

सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड पर नैतिकता के मानदंडों की बड़ी चर्चा हुईं और वुछ लोगों ने तो इसे घोटाला भी कहा किन्तु वास्तविकता तो यह है कि कारपोरेट घराने की किसी एक पाटा को अकेले चंदे की राशि नहीं देते। मेघा को ही देखिए 2019-20 और 2023-24 के बीच इस वंपनी ने वुल 966 करोड़ रुपए के बांड खरीदे। इसने भाजपा को 585 करोड़ रुपए का चंदा दिया था जबकि बीआरएस को 195 करोड़ रुपए, डीएमके को 85 करोड़, वाईंएसआरसीपी को 37 करोड़, टीडीपी को 25 करोड़ जबकि कांग्रोस को 17 करोड़ रुपए दिए। मतलब यह कि चुनावी बांड के जरिए ज्यादातर राजनीतिक दलों को चंदे की राशि मिलती रही। किन्तु वुछ पार्टियां तो चुप्पी साधे हुए हैं जबकि वुछ पार्टियां इसे बड़ा घोटाला बताकर मात्र एक पार्टा को घेरने की कोशिश करते हैं। यही विरोधाभासी विचार चुनावी बांड के खिलाफ तर्व को प्राभावहीन साबित कर रहा है। सच तो यह है कि जब चंदा देने वालों का यह भ्रम दूर हो जाता है कि उन्होंने राजनीतिक पार्टियों से फायदा लेने के लिए चंदा दिया है, तभी उनकी नीयत में खोट आ जाती है।

बहरहाल सीबीआईं को इस बात की परवाह नहीं होनी चाहिए कि किस भ्रष्टाचारी ने चुनावी बांड खरीद कर भ्रष्टाचार किया अथवा भ्रष्टाचार करके बांड खरीदा। इससे लगता है मेघा के खिलाफ कार्रवाईं सुनिाित है। चुनावी चंदे के नाम पर बेईंमानीपूर्ण तरीके से कम्पनी चलाना अपने आप भ्रष्टाचार है। देखना यह है कि मेघा के खिलाफ कार्रवाईं का चुनावी बांड के विमर्श को किस तरह प्राभावित करता है।

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