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जीएसटी से उम्मीद

👤 admin6 | Updated on:21 May 2017 6:58 PM GMT

जीएसटी से उम्मीद

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अब डेढ़ महीने से भी कम समय बचा है जब देश के बाजार का पूरा दृश्य ही बदल जाएगा क्योंकि एक जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर यानि जीएसटी लागू हो जाने के बाद खरीददारों का अनुभव बिल्कुल ही बदल जाएगा। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने गत सप्ताह जीएसटी परिषद के साथ बैठक में जिस तरह वस्तुओं एवं सेवाओं की दरों का निर्धारण किया है उससे एक बात तो बहुत साफ है कि इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि आम आदमी को किसी भी तरह का झटका न लगे। अनाज, दाल, दूध, दही, अंडे, फल, सब्जी जिन्हें किसान पैदा करते हैं उन पर जीएसटी लागू न करने का फैसला करके जीएसटी परिषद ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। सरकार हमेशा इस बात पर जोर देती रही है कि किसानों के उत्पाद को कर से मुक्त रखा जाना चाहिए। किसान के खेत-खलिहान से जो भी उत्पाद मंडियों में पहुंचेगा उसे कर मुक्त करने से किसानों में हताशा का भाव पैदा नहीं होगा। यदि किसानों के उत्पादों पर जीएसटी लागू हो जाता तो किसानों की आय प्रभावित होती और उत्पाद में कमी आना भी स्वाभाविक रहता। अब जीएसटी परिषद के फैसले से एक बात और साफ हो गई कि खाने-पीने की वस्तुएं पहले से सस्ती ही सकती हैं। मजे की बात तो यह है कि खाने-पीने की जिन वस्तुओं पर जीएसटी लागू किया गया है वे भी पहले से सस्ती हो जाएंगी। चाय, कॉफी, मिठाई इत्यादि पर सिर्फ पांच प्रतिशत जीएसटी लागू होना है जबकि पहले की व्यवस्था के मुताबिक बिक्री कर बहुत ज्यादा लगता था और खाने-पीने की वस्तुएं ज्यादा महंगी हो जाती थीं।

जीएसटी परिषद ने उपभोक्ताओं की सुविधाओं का हर तरह से ध्यान रखा है। जिन वस्तुओं पर जीएसटी 28 प्रतिशत तक लगा है वे बाजार के कुल सामान का 19 प्रतिशत ही है। बात 28 प्रतिशत जीएसटी लागू करने पर करें तो रोचक तथ्य यह है कि इसके बावजूद कुछ उत्पाद पहले से सस्ते हो जाएंगे। अब छोटी पेट्रोल कार का ही उदाहरण लें।

इस तरह की कारों पर 28 प्रतिशत जीएसटी के अलावा सेस भी प्रस्तावित है किन्तु इसके बावजूद भी छोटी पेट्रोल कारें अब पहले से सस्ती हो जाएंगी।

असल में भारत सरकार, राज्य सरकारें, विभिन्न राजनीतिक दल सभी इस बात से सहमत हैं कि केंद्र व राज्य सरकारों के राजस्व भी कम न हो और उपभोक्ताओं को राहत भी मिल जाए। इसी उद्देश्य से पिछले 10 वर्षों से जीएसटी लागू करने के लिए केंद्र सरकार आतुर है। कई कारणों से जीएसटी विधेयक के ड्राफ्टिंग से लेकर इसके पारित होने के बीच बाधाएं आईं किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति और वित्तमंत्री श्री जेटली के व्यवहार एवं सभी पार्टियों के नेताओं से अच्छे संबंधों एवं राज्य सरकारों के संदेहों का निराकरण करने देश की जनता को जीएसटी के फायदे महसूस कराने की शैली के कौशल में पारंगत होने के कारण ऐसी आम सहमति बनी कि उपभोक्ताओं को तो लाभ मिलने वाला है ही, वे राज्य सरकारें भी सहमत हो गई हैं जिनमें औद्योगिक उत्पादन होते हैं। सबसे ज्यादा मुश्किल तो राजनीतिक दलों की वजह से पैदा हुई थी जो मोदी विरोधी मानसिकता के कारण इस दुर्भावना से ग्रसित थे कि यदि जीएसटी लागू करने का श्रेय मौजूदा सरकार को मिल जाएगा तो वे क्या करेंगे? इसीलिए आए दिन संसद के दोनों सदनों में एक से एक घटिया बहाने बनाकर देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी हंगामे करती रहती थी किन्तु जब विपक्षी पार्टियों को लगा कि जनता भी जीएसटी के पक्ष में है तो सभी इस नई कर व्यवस्था के बारे में एक मत से खड़े हुए। अच्छी बात है विपक्ष के संदेहों का दूर होना जरूरी भी था और उन्हें इस बात का अहसास भी जरूरी था कि अब देश का बाजार और उपभोक्ता पहले जैसे नहीं रहे। बाजारों के माहौल और उपभोक्ताओं की जरूरतें पहले से बहुत ज्यादा भिन्न हो चुकी हैं। इसीलिए जनता ने `एक देशöएक कर' की जरूरत महसूस की। लोकतंत्र के लिए इससे अच्छी बात और कुछ भी नहीं हो सकती कि तमाम मुद्दों पर विरोध होने के बावजूद जीएसटी पर सभी पार्टियां और सभी राज्य सरकारें भले ही वे किसी भी पार्टी की हों, एक मत से जीएसटी विधेयक पारित कराया और जीएसटी परिषद के साथ मिलकर हर एक वस्तु की कीमत एवं सेवाओं की दरों का निर्धारण किया। इससे यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में संदेहों का निराकरण और सहयोग बहुत आवश्यक है और जीएसटी मामले में तो यह और भी जरूरी था क्योंकि इस तरह की व्यवस्थाएं बार-बार लागू नहीं होतीं।

बहरहाल जीएसटी लागू होने के बाद उपभोक्ताओं को तो जटिलताओं से छुटकारा मिलेगा ही साथ ही कर में पारदर्शिता भी आ जाएगी। इससे उपभोक्ता के लिए भी आसानी होगी। इंस्पेक्टर राज खत्म होगा। भारतीय कर व्यवस्था कुख्यात रही है क्योंकि देश में कुल 20 तरह के कर थे। इन्हीं करों के मकड़जाल की वजह से विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने से पहले कई बार सोचते थे। अब जबकि जीएसटी लागू होने की तिथि निर्धारित हो गई है और उसके सारे प्रावधानों पर गंभीरता से चर्चा हो चुकी है तो देश में विदेशी निवेश और आर्थिक विकास भी बढ़ेगा और मेक इन इंडिया योजना की सफलता में सहयोग मिलेगा। उम्मीद की जा रही है कि जीएसटी के बाद सकल घरेलू उत्पाद भी एक से दो प्रतिशत बढ़ेगा क्योंकि कई कारोबार व्यापार जो पहले टैक्स के दायरे से बाहर थे उन्हें अब नई कर प्रणाली अपनानी होगी। इसीलिए उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि विकास दर के बढ़ते ही रोजगार में भी वृद्धि होना तय है। जीएसटी लागू होने के बाद मुद्रास्फीति भी दो प्रतिशत कम होने के उम्मीद जताई है सरकार ने। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कर व्यवस्था में आई पारदर्शिता का सबसे ज्यादा प्रभाव भ्रष्टाचार पर पड़ेगा। सतर्क सरकार, चुस्त कर-व्यवस्था तंत्र अब आसानी से कर वंचकों को पकड़ सकेंगे। इसलिए इस नई कर व्यवस्था से जटिलताएं जाएंगी और पारदर्शिता आएगी। भ्रष्टाचार का प्रतिकूल प्रभाव समाज के हर वर्ग पर पड़ता है इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि अब बाजारों का माहौल और उपभोक्ताओं के अनुभव दोनों ही बदल जाएंगे।

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