तनातनी

👤 Veer Arjun | Updated on:14 April 2024 7:59 AM GMT

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मध्य एशिया में जबरदस्त तनाव का माहौल है किन्तु इसे तूफान के पहले की खामोशी के तौर पर देखा जा रहा है। असल में ईंरान ने इजरायल के खिलाफ हमले की धमकी देकर न सिर्फ अपने शत्रु राष्ट्र को सावधान कर दिया है बल्कि इजरायल के सारे रणनीतिक सहयोगियों को भी ललकार दिया है। इसका परिणाम यह हुए कि ईंरान ने रविवार तक इजरायल पर हमला बोलने की गीदड़ भभकी तो दे दी किन्तु अमेरिका और समूचा यूरोप चौकन्ना हो गया।

दरअसल मध्य एशिया की आंख की किरकरी तो इजरायल अपने जन्म काल से ही है किन्तु कभी-कभी इजरायल के खिलाफ माहौल बनाने और इस्लामिक राष्ट्रों को एकजुट अथवा सबसे बड़ा इस्लामिक राष्ट्र का दावा करने वाले देश इजरायल पर हमले करने की घोषणा कर देते हैं।

लेकिन जब उन्हें इजरायल कड़ा जवाब देता है तो इस्लामिक देश अमेरिका को दोषी ठहराने लग जाते हैं कि वह इजरायल की सहायता करके युद्ध को इजरायल के पक्ष में कर देता है। अमेरिका के खिलाफ इजरायल के शत्रु राष्ट्रों की शिकायत अपने स्थान पर बिल्वुल सही है। अमेरिका और यूरोप में यहूदी व्यापारी बहुत ज्यादा समृद्ध और प्राभावशाली हैं। उनका अपनी सरकारों पर तो प्राभाव है ही साथ ही इन देशों के विपक्षी भी अपनी सरकार को आगाह करते हैं कि यहूदी देश मात्र एक ही है इजरायल। इसलिए उसकी सुरक्षा हर हाल में होनी चाहिए। यही कारण है कि जब-जब इजरायल पर संकट के बादल घिरते हैं, तो अमेरिका और यूरोप के देश खुलकर इजरायल के साथ खड़े हो जाते हैं। खड़ा भी इस तरह से होते हैं कि हर युद्ध में वह पहले से ज्यादा आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से संपन्न हो जाता है।

बहरहाल अपनी दुश्मनी को अंतिम रूप देने के लिए ईंरान हमेशा इजरायल के खिलाफ तत्पर रहता है किन्तु 1 अप्रौल को इजरायल ने सीरिया के दमिश्क में ईंरानी राजदूतावास के काउंसलर पर हमला करके इमारत नष्ट कर दी और ईंरान के इस्लामिक रिवाल्यूशनरी गार्ड के दो कमांडर एवं उसके सात सदस्यों को मार डाला। तभी से ईंरान ने इजरायल से बदला लेने की ठानी है। अमेरिकी खुफिया सूत्रों के मुताबिक ईंरान इजरायल के खिलाफ रविवार तक हमला कर सकता है।

ईंरान का इजरायल के खिलाफ जंग का ऐलान है। एक तरफ तो उसे इजरायल के खिलाफ शत्रु भाव व्यक्त करने पर उसे इस्लामिक देशों के बीच मान मिलता है तो दूसरी तरफ ऐसा करके अपने देश के लोगों को इस बात का एहसास कराता है कि वुछ भी हो जाए वह सऊदी अरब, तुका और यूएईं की तरह इजरायल के प्राति नरम रुख नहीं अपना सकता। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि यदि ईंरान हमास को उकसाकर इजरायल के निहत्थे लोगों पर हमला करवाने के बाद भी यह सोचता है कि इजरायल अपने शत्रुओं को पहचानने एवं उसके विरुद्ध कार्रवाईं करने में संकोच करेगा तो यह इसकी ना समझी होगी। स्थिति यह है कि ईंरान ने इजरायल के खिलाफ हमले की चेतावनी तो दे दी किन्तु अब अमेरिका ने नौसेना के दो विध्वंसक युद्ध पोतों को भूमध्य सागर तैनात कर दिया है। तमाम प्रातिबंधों से मुश्किल में पंसे ईंरान को भले लगता हो कि वह इजरायल के खिलाफ हमले करके गाजा पट्टी में इजरायल के हमलों को रोक पाने में सफल होगा, किन्तु सच तो यह है कि ऐसा सोचकर वह बहुत बड़ी गलती कर रहा है। उसे शायद इस बात का अनुमान नहीं है कि यदि इजरायल पर ईंरान ने हमला किया तो उसके खिलाफ हमला करने के लिए अमेरिका और यूरोप को बहाना मिल जाएगा। लब्बोलुआब यह है कि प्रायास शत्रुता पर नियंत्रण के लिए तेज किए जाने चाहिए, युद्ध की भाषा किसी के लिए भी हितकर नहीं हो सकती।

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