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बच्चों में पकी चाह कैसे पैदा करें

👤 Admin 1 | Updated on:18 April 2017 7:18 PM GMT

बच्चों में पकी चाह कैसे पैदा करें

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नीलम अरोड़ा

बच्चे किसी भी आयु वर्ग के हों, बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं जो पका आनंद उ"ाते हैं या जिन्हें पमें सचमुच रूचि होती है। हममें से ज्यादातर लोग सिर्फ इसलिए पहैं; क्योंकि हमें पहोता है। फर परीक्षा पास करनी होती है, जिसकी तैयारी के लिए हम दिन-रात एक करते हैं। बच्चे माता पिता की डांट से बचने के लिए पहैं। हममें से बहुत कम ऐसे लोग हैं जो पका पूरा मजा उ"ाते हैं। किसी को पके लिए प्रेरित करने का कोई तयशुदा फार्मूला नहीं है। कक्षा में भी जब तक टीचर रहती हैं बच्चों के हाथों में किताब रहती है और इस दौरान उन्हें जबरदस्ती पया जाता है। भले ही किसी को पके लिए प्रेरित करने के लिए कोई बाहरी प्रेरणा न हो, इसके बावजूद पके लिए माहौल की बड़ी भूमिका होती है जो स्टूडैंट्स को हर समय पके लिए प्रेरित करती है और उनमें पके लिए निरंतर उत्साह जगाए रहती है। यही वजह है कि बच्चे जब छोटे होते हैं तो माता पिता उन्हें जबरदस्ती पके लिए कहते हैं। जब वे बड़े हो जाते हैं तो वे खुद पऔर उनके भीतर भी पकी रूचि जागृत हो पेरैंट्स यही मानकर चलते हैं, जबकि बहुत कम ऐसे विद्यार्थी होते हैं जिन्हें पके लिए कहना नहीं पड़ता। इस पऔर पके लिए प्रेरित करने की जद्दोजहद में एक स्थिति ऐसी भी आती है जब बड़े उन्हें पके लिए कहते कहते थक जाते हैं और विद्यार्थी भी कशमकश में रहते हैं कि वे अपने आपको पकरने के लिए कैसे प्रेरित करें।

बच्चों को पके लिए प्रेरित करने का कोई मंत्र नहीं है लेकिन यह एक ऐसी आदत है जो एक दिन में विकसित नहीं होती। इसके लिए बच्चों को लगातार पके लिए धीरे-धीरे प्रेरित किया जाता है और वे भी इसमें धीरे-धीरे अपनी रूचि विकसित करते हैं। यदि बड़े उन पर पका एकाएक ज्यादा दबाव बनाते हैं तो इससे बच्चे निराश होते हैं और बड़े भी उन्हें मोटीवेट करने में नाकाम रहते हैं। बच्चों के लिए सही माहौल बनाना और उनकी दिनचर्या में पका समय निर्धारित करना एक ऐसी तकनीक है जिससे वे अपने कामों में न केवल रूचि लेते हैं बल्कि वे इसे सफलतापूर्वक करने के लिए उत्साहित रहते हैं। पके लिए घर का वातावरण शांत होना चाहिए; क्योंकि शोरगुल में बच्चों के लिए एकाग्रचित होकर पपाना संभव नहीं होता।

जिन घरों में पवाले बच्चे हों वहां उन्हें पके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आसपास यदि अन्य लोग भी पकी गतिविधि में संग्लन रहते हैं तो बच्चों को फोकस करने में आसानी होती है। पके साथ बच्चे में सकारात्मक भावना का होना भी, बच्चे के पके लिए पॉजिटिव माहौल बनाता है। पसे जुड़ी खुशी, जोश, मजा और उससे मिलने वाला सहयोग न केवल बच्चे को नयी ऊर्जा से भरता है बल्कि दिल-दिमाग की शांति उसे खुशी भी देती है। बच्चे को यदि एक बार पमें मजा आने लगता है तो वह बार बार पकी ओर प्रेरित होता है। बच्चे में पके प्रति रूचि पैदा करने में माता पिता के अलावा स्कूल का भी अहम योगदान होता है। उस पर बार बार पके लिए दबाव बनाना, लगातार कई घंटों तक उसे पमें लगाए रखना यह सब उसे बोरियत से भर देता है। इसलिए उसे पकी बोरियत से बचने के लिए उस पर किसी तरह का प्रेशर भी नहीं बनाना चाहिए।

यहां सवाल यह पैदा होता है कि बच्चे में अगर पकी रूचि लगातार नहीं बनती तो इसकी वजह क्या है? आमतौर पर जो बच्चे पपसंद नहीं करते, उनके न पके पीछे गहरी वजह भी हो सकती है। पमें कमजोर होना, लिखने में अक्षम होना या फिर गणित जैसे दुरूह विषय को न पपाना, इस प्रकार पैरेंट्स ही नहीं बल्कि स्कूल टीचर्स को भी स्टूडैंट्स के साथ स्टडी सेशन में उनके भीतर के स्किल गैप को पहचानकर उसका समाधान करने की दिशा में सोचना चाहिए। यदि उनके बीच इस तरह का गैप ज्यादा गहरा है तो उन्हें सपोर्ट देकर फ्रूटफुल बनाना चाहिए। योग्य न होने के कारण यदि विद्यार्थी में निराशा पैदा होती है इससे उसके सीखने की प्रक्रिया में बाधा पैदा होती है। स्कूल में टीचर्स को चाहिए कि उसकी सीखने की क्षमता को एक सक्रिय फीडबैक मिले। यदि वह इसके लिए प्रयास करता है और इस दिशा में पहल लेता है तो उसके इस प्रयास की न केवल सराहना करनी चाहिए बल्कि उसे और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसे प्रोत्साहन देने का यदि प्रयास न किया जाए या उसके प्रयासों की अनदेखी की जाए तो वह प्रयत्न करना छोड़ सकता है। बच्चों को इस बात के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए कि उनके लिए पकितना आवश्यक है।

अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को वे कैसे सीखें ही नहीं बताना चाहिए बल्कि उन्हें क्या सीखना है, यह भी सिखाया जाना चाहिए। इन तमाम बातों के अलावा विद्यार्थियों को वे क्या सीख रहे हैं या सीख चुके हैं, उन्हें इसका भी ज्ञान कराना चाहिए। इसके द्वारा न केवल उनके भीतर का ज्ञान बहै बल्कि पके द्वारा वे जिन अवधारणाओं को सीखते हैं वे उन्हें भी अपनाने का प्रयास करते हैं। उनके जानने की इच्छा जब चरम पर होती है तो उन्हें इसमें मदद करें और उन्हें पूरा रिस्पोंस दें, उनके प्रति किए जाने वाले तमाम सराहनीय प्रयास न केवल उन्हें पकी ओर प्रेरित करते हैं बल्कि इसके द्वारा वे अन्य दूसरे विद्यार्थियों को भी पके लिए प्रेरित कर सकते हैं और इस तरह यह सिलसिला यूं ही चलता रहता है।

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