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उज्जैन में महाकाल का सुरक्षित अभिषेक!

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:11 Nov 2017 4:39 PM GMT

उज्जैन में महाकाल का सुरक्षित अभिषेक!

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मध्य की प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन के प्रबुद्ध वर्ग के लिए 27 अक्तूबर का दिन महत्वपूर्ण था. इस दिन विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर की पूजा-अर्चना की विधि पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई. उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि भूतभावन महाकाल का अभिषेक अब ''आरओ वाटर" से ही होगा. शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए न्यायालय में दायर याचिका पर यह व्यवस्था दी गई है.

इसके अनुसार एक श्रद्धालु अधिकतम आधा लीटर ''आरओ वाटर" चढ़ा सकेगा. उज्जैन की सारिका गुरु की याचिका पर जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की खंडपीठ में मंदिर समिति के इस प्रस्ताव पर भी न्यायालय ने अपनी मोहर लगाई कि दूध या पंचामृत की मात्रा अधिकतम सवा लीटर ही रहेगी. यह भी तय किया गया कि भस्मारती के दौरान शिवलिंग को सूती कपड़े से ढंक दिया जाएगा. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ उज्जैन में ही तड़के चार बजे भस्मारती होती है जिसके लिए उपले की राख तैयार की जाती है.
उच्चतम न्यायालय में तय व्यवस्था के बिंदु सार्वजनिक होने के बाद इसको लेकर विद्वानों में बहस भी शुरू हो गई. मशहूर ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास कहते हैं, ''महाकाल की पूजन विधि में परिवर्तन शास्त्रसम्मत नहीं है, मंदिर की प्राचीन पूजन परंपरा में बदलाव शंकराचार्यों से विमर्श के बाद ही किया जा सकता है." वहीं सारिका गुरु का तर्क है कि दूषित जल तथा पंचामृत से शिवलिंग को नुक्सान पहुंच रहा है. शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए अन्य ज्योतिर्लिंगों में भी कुछ उपाय किए गए हैं.
केदारनाथ, मल्लिकार्जुन, भीमाशंकर, घृष्णेश्वर, सोमनाथ, ओंकारेश्वर और त्रयंबकेश्वर में दर्शनार्थियों के शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाने पर रोक है. नागेश्वर और भीमाशंकर में ज्योतिर्लिंग पर चांदी का कवच ढका जाता है जबकि रामेश्वरम और सोमनाथ में श्रद्धालुओं का गर्भगृह में प्रवेश प्रतिबंधित है. काशी विश्वनाथ में ज्योतिॄलग को स्पर्श नहीं किया जा सकता पर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सिर्फ उज्जैन के महाकाल का जलाभिषेक ''आरओ वाटर" से होगा. यह मंदिर के आरओ प्लांट से ही उपलब्ध कराया जाएगा. अब तक मंदिर परिसर के कोटितीर्थ में जमा जल से महाकाल का जलाभिषेक होता था.
उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई थी जिसमें भू-वैज्ञानिक और पुरातत्वविद् शामिल थे. समिति ने पंचामृत से क्षरण की आशंका के मद्देनजर इसकी मात्रा सीमित करने की अनुशंसा की थी. पं. व्यास जैसे अनेक विद्वानों का मानना है कि अनादि काल से शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाकर अभिषेक होता रहा है, यदि मिलावटी सामग्री से नुक्सान की आशंका है तो मंदिर प्रबंधन खुद शुद्ध सामग्री जैसे दूध, शहद, शकर, दही और घी उपलब्ध कराए.
मंदिर प्रबंधन ने समिति के सुझावों पर अमल करते हुए न्यायालय को सूचित किया कि शकर के स्थान पर गुड़ से बनी खांडसारी का उपयोग पंचामृत में किया जाएगा. अब तक शकर बूरे को शिवलिंग पर रगड़ा जाता था, जो अब प्रतिबंधित होगा. मंदिर प्रबंधन ने न्यायालय को आश्वस्त किया कि शाम पांच बजे बाद सिर्फ सूखी पूजा ही होगी, किसी को जल नहीं चढ़ाने दिया जाएगा और उससे पहले शिवलिंग तथा गर्भगृह की नमी को पंखे आदि से सूखाया जाएगा. इससे पहले तक भी शाम को शृंगार के बाद जलाभिषक की अनुमति नहीं दी जाती थी. भांग से शृंगार जरूर किया जाता रहा है.
शिवलिंग क्षरण पर पहले भी चिंता व्यक्त की जाती रही है और गर्भगृह में प्रवेश तथा शिवलिंग के स्पर्श को प्रतिबंधित किए जाने के सुझाव दिए गए. कहा गया कि श्रद्धालुओं के हाथ की गर्मी और पसीने से शिवलिंग को नुक्सान पहुंचता है पर इस सुझाव के विरोधियों ने तर्क दिया कि महाकाल तो शक्तिपुंज हैं और श्रद्धालु स्पर्श से उनसे ऊर्जा हासिल करते हैं. इसलिए यह सुझाव ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. बीते वर्षों में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. यह देश का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, सो तंत्र पूजा में इसका बहुत महत्व है. यह विशालकाय ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है इसलिए भी इसका महत्व अधिक है.

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