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आस्या: बिजली सी कौंध वाली उस मुहब्बत का नाम

👤 Admin 1 | Updated on:21 April 2017 5:30 PM GMT

आस्या: बिजली सी कौंध वाली उस मुहब्बत का नाम

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लोकमित्र

(यूं तो किसी रचना के पात्र रचनाकार की कल्पना की क"पुतलियां भर होते हैं। रचनाकार उनका इस्तेमाल सिर्फ अपनी बात कहने के लिए करता है। लेकिन धोखे से ही सही या कई बार बेध्यानी में रचनाकार से इन क"पुतली किरदारों में जान भी डल जाती है। तब ये किरदार रचनाकार के इशारों के गुलाम नहीं रह जाते। तब रचना के रंगमंच का पर्दा गिरते ही ये गायब नहीं होते बल्कि दर्शकों, पा"कों और श्रोताओं के साथ चल पड़ते हैं और पूरी जीवंतता के साथ ताउम्र उनके साथ रहते हैं। फ्रेमचंद की कहानी कफन के माधव और घीसू रवींद्रनाथ टैगोर का अफगान काबुलीवाला फिल्म शोले का सांभा ऐसे ही अमर किरदार हैं जिनकी मौजूदगी महज रचना तक ही सीमित नहीं है, उसके बाद भी पा"कों और दर्शकों के साथ इनकी जीवंत मौजूदगी बनी रहती है। रूसी रचनाकारों को तो ऐसे जीवंत किरदारों को रचने में महारत ही हासिल है। इस कॉलम में हम हर महीने ऐसे ही किसी अमर पात्र या किरदार के बारे में चर्चा किया करेंगे। जिसकी शख्सियत किसी रचना तक सीमित न रहकर उससे ऊपर उ" गई हो। इसकी शुरुआत हम विख्यात रूसी लेखक इवान तुर्गेनेव के लघु उपन्यास आस्या की इसी नाम वाली नायिका से कर रहे हैं। संपादक इमेज) आस्या रूस के महानतम लेखकों में से एक इवान तुर्गेनेव के इसी नाम के उपन्यास की नायिका है। वैसे उसका वास्तविक नाम आन्ना निकोलाएब्ना है। लेकिन कुल तीन पात्रों वाले इस उपन्यास के शेष दो पुरुष पात्र उसे प्यार से आस्या कहकर ही पुकारते हैं। इसीलिये पूरे उपन्यास में उसका वास्तविक नाम नायक के हो"ाsं से सिर्फ एक ही मौके पर दो बार फूटता है, वह भी असमंजस की घड़ी में। आस्या एक बेहतरीन लघु उपन्यास है। कहना चाहिए एक मास्टर पीस और शायद इसकी वजह है आस्या। आस्या एक इतनी मासूम लड़की जिसे देखकर मासूमियत का पैमाना भी झेंप जाय। वह हंसती है तो अंधेरी रास्तों में चांदनी बिखर जाती है। वह गाती है तो जंगल में खुश्बू बिखर जाती है। तुर्गनेव ने आस्या का किरदार इतनी नाजुकमिजाजी से गढ़ा है कि उपन्यास पढ़ने की शुरुआत करते ही वह आपके दिलो-दिमाग में जंगली खुश्बू की तरह धीरे-धीरे छाने लगती है। बेहद मादक और प्योर आस्या उपन्यास का आखिरी वाक्य खत्म होते होते पा"क के दिल और दिमाग में ही नहीं उसकी आत्मा में भी अपना स्थाई घर बना चुकी होती है। आस्या की दो लब्जों में एक छोटी सी कहानी है। वह एक धनी जमींदार की नाजायज औलाद है। उसकी मां उसके कुलीन पिता के घर की कृषि दासी है। लेकिन जमींदार उससे शादी करना चाहता है। मगर दासी खुद यह कहते हुए मना कर देती है कि इससे उनकी समाज में इज्जत नहीं रहेगी। आस्या की आ" सालों तक परवरिश अपनी मां की झोपड़ी में होती है। उसमें गरीबी में पलने वाले बच्चों वाली तमाम हीन भावनाएं भरी हैं। बीमार मां की एक दिन अचानक मौत के बाद उसे जमींदार यानी उसके पिता अपने साथ रहने के लिए उसे घर ले आते हैं। जमींदार की पत्नी मर चुकी है। एक बेटा गागिन है जो कुलीनों के किसी बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता है। वह स्कूल की छुट्टियों में घर आता है। तब पहली बार उसकी इस सकुचाती, शर्माती और असमंजसों से भरी लड़की आस्या से मुलाकात होती है। जिसे उसके पिता ने नौकरानी की अनाथ बेटी बताया होता है। मगर दुर्भाग्य से कुछ ही सालों में जमींदार की भी मौत हो जाती है। लेकिन मरने के पहले वह अपने बेटे गागिन को आस्या के बारे में सब कुछ सही-सही बता देते हैं। आस्या उसकी बहन है, गागिन यह जानकर उसकी कुलीनों वाली पढ़ाई-लिखाई का फ्रबंध करता है। लेकिन गरीबी और हीनभावना से भरी अपनी बुनियादी परवरिश के कारण आस्या इस सबमें सहज नहीं रह पाती और तमाम कोशिशों के बावजूद वह कुलीन बोर्डिंग स्कूल में खुद को बेहद अनफिट पाती है। यहां तक कि इससे वह गंभीर रूप से बीमार हो जाती है और मरते-मरते बचती है। गागिन अपनी बहन को बहुत प्यार करता है जो बहन कल्पना की हद तक मासूम, अल्हड़, स्वाभिमानी और साहसी है। गागिन एक चित्रकार है। वह सोचता है आस्या को विदेश घुमाने ले जाऊं तो शायद उसका मन अपने त्रासद अतीत से बाहर निकल जाए और वह सहज हो जाए। इसलिए वह उसे विदेश घुमाने ले जाता है ताकि वह अपने अभिशप्त मूल को भूलकर सहज हो सके और किसी से प्यार कर शादी कर सके। किसी हद तक गागिन कामयाब भी हो जाता है। विदेश में आस्या और गागिन की मुलाकात अपने ही देश के एक मनमौजी युवक मिस्टर न, से होती है। जिंदगी में अभी तक किसी युवक को पसंद न करने वाली आस्या, मिस्टर न को पहली नजर में ही प्यार कर बै"ती है। लेकिन वह इतनी मासूम है कि जिंदगी में पहली बार आये प्यार के इस तूफान से असहज हो जाती है। उसके दिल-दिमाग में इससे इतनी उथल-पुथल मचती है कि वह जबरदस्त बुखार की चपेट में आ जाती है। मुहब्बत का यह पहला असर उसके सारे वजूद में बिजली सा कौंधा जाता है। मिस्टर न। भी आस्या को दिलोजान से चाहता है। उसे वह अपने सपनों की परी लगती है। गागिन भी खुश है कि उसकी प्यारी बहन अब जीवन में सहज हो जायेगी। लेकिन हाय रे आस्या की बदकिस्मती। दुर्भाग्य के असंख्य थपेड़ों के बीच पली-बढ़ी आस्या एक बार फिर बदकिस्मती का शिकार हो जाती है। मिस्टर न। ऐन वक्त पर नहीं कह पाता कि वह आस्या को प्यार करता है। इससे आस्या हमेशा-हमेशा के लिए टूटकर बिखर जाती है। यह बेहद करुण कहानी है। आप चाहे जितने क"ाsर और भावहीन हों लेकिन उपन्यास के अंत तक आते-आते आपकी आंखें गीली हो ही जायेंगी। आस्या की मासूमियत, बिजली की कौंध की सरीखी उसकी मुहब्बत। ये सब चीजें उसे तुर्गनेव द्वारा रचा अमर किरदार बनाता है।

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