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ग्रामीण महिलाओं द्वारा हर माह बनाए जा रहे ढाई लाख सेनेटरी नेपकिन पैड

👤 admin5 | Updated on:24 May 2017 3:49 PM GMT
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भोपाल (ब्यूरो मप्र)। ग्रामीण आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूहों से प्रशिक्षण लेकर गाँवों में रहने वाली निर्धन परिवार की 2149 महिलाओं के समूह द्वारा प्रतिमाह लगभग 2 लाख 50 हजार सेनेटरी नेपकेन पैड बनाये जा रहे हैं। इनकी गुणवत्ता मानक स्तर की तथा पैकिंग भी आकर्षक है जो किसी बहुर्राष्ट्रीय कम्पनी के मुकाबले कम नहीं हैं। सेनेटरी नेपकिन गुड़गांव के मॉल में शहरी ग्राहकों की पसंद बन गये हैं। ग्रामीण परिवारों की कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के बारे में यह धारणा होती है कि वे केवल कृषि कार्य या पशुपालन जैसे परंपरागत आजीविका के काम ही कर सकती हैं। अब इन ग्रामीण महिलाओं ने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूहों से जुड़कर मानक स्तर के सेनेटरी नेपकिन बनाकर नई इबारत गढ़ी है। इससे ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक सुदृढ़ीकरण की नई संभावनायें दस्तक देती दिखाई दे रही हैं।

ग्रामीण महिलाओं के आजीविका उत्पादों को बिचौलियों रहित उचित बाजार उपलब्ध करवाने के लिए सीधे विलेज टू कन्ज्यूमर की तर्ज पर काम किया जा रहा है। इसका सीधा फायदा गरीब महिला निर्माताओं एवं ग्राहक को मिल सके, इसके लिए न्2म्ंazar.म्दस् के माध्यम से आजीविका सेनेटरी नेपकिन पैड को डिजिटल प्लेटफार्म पर लाकर वैश्विक स्तर के ऑनलाईन बाजार में अवसर उपलब्ध करवाया गया है। ऑनलाईन मार्केट से जुड़ने के कारण गाँव के अलावा शहरी ग्राहकों तक भी पहुँच बनती जा रही है।

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री एल.एम. बेलवाल ने बताया कि मिशन के प्रारंभ से अब-तक एक लाख 79 हजार 615 स्व-सहायता समूह से 20 लाख 67 हजार 765 निर्धन परिवारों को जोड़ा गया है। इसमें से 13 लाख 22 हजार 084 परिवार कृषि, एन.टी.एफ.टी. पशुपालन, व्यक्तिगत, सूक्ष्म उद्यम गतिविधियों से जुड़कर लाभन्वित हो रहे हैं। इनमें से लगभग एक लाख 29 हजार से अधिक लखपति की श्रेणी में आ चुके हैं।

समूहों से जुड़ी महिलायें सामुदायिक स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के प्रति महिलाओं को जागरूक कर सेनेटरी नेपकिन पैड का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। आंगनबाड़ी केन्द्राsं के माध्यम से तथा व्यक्तिगत संपर्प कर समूह सदस्यों द्वारा सेनेटरी पैड की नियमित सप्लाई की जा रही है। बाजार की तुलना में कम दाम होने से और आसानी से घर पर उपलब्ध होने के कारण गाँवों में इसकी माँग बढ़ी है। यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि मध्यप्रदेश में ग्रामीण महिलायें केवल परंपरागत कृषि, पशुपालन आदि काम के साथ-साथ नया काम भी कर सकती हैं।

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