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“सौभाग्य का श्रृंगार : करवाचौथ”

👤 Veer Arjun | Updated on:31 Oct 2023 6:19 AM GMT

“सौभाग्य का श्रृंगार : करवाचौथ”

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“सौभाग्य का श्रृंगार : करवाचौथ”

हमारा सनातन धर्म प्रत्येक रिश्तें को अनेकों रूप में श्रृंगारित करता है। करवाचौथ की पावनता भी कुछ अनूठी सी है। यह व्रत तो सौभाग्य के श्रृंगार का समय है। कितने अर्पण की भावना इस व्रत में निहित है। कठिन तपस्या करते हुए भूखे-प्यासे रहकर भी पति की लम्बी आयु के लिए अनवरत प्रार्थना करना, पूजन-अर्चन करना और श्रृंगार करना। वैदिक परम्पराओं ने जीवन को उत्सव का स्वरुप दिया है। पति-पत्नी का रिश्ता ही अंत तक जीवंत रहता है। यह उत्सव इस रिश्ते में नवीनता, उत्साह और कुछ अनूठे पलों का संयोग करते है। पतिव्रत धर्म की अद्वितीय मिसाल होती है नारी शक्ति। पति को परमेश्वर रूप में पूजने वाली अपने जीवन के पल-पल को समर्पित करने वाली, उपहार स्वरुप अक्षय प्रेम की मनोकामना करने वाली नारी। पति के अनुराग में सर्वस्व भूलकर केवल समर्पण की अभिव्यक्ति करती है।

तेरा होना मुझे अपनेपन का एहसास दिलाता है।

तेरा एहसास मुझमे नई उमंगे जगाता है॥

तुझसे लड़ना-झगड़ना भी मेरे जीवन में नए रंग भरता है।

जीवन का हर क्षण तेरे संग ही नई यात्रा करता है॥

पत्नी के लिए पति का सानिध्य किसी सुन्दर एहसास से कम नहीं है। ईश्वर तुल्य पति को मानकर उसके लिए श्रृंगार करती है और अपने सौभग्य पर इठलाती है। पति के लोचन में अपने लिए प्रेम देखकर अनायास ही सुखद क्षणों की अनुभूति करती है। अपने आप को पुण्यवान बताती है और चौथ माता से अखंड सौभाग्य के लिए मनोरथ करती है। कितने विशाल ह्रदय से परिपूरित होती है नारी। अपने पति के लिए सदैव व्रत-उपवास की श्रृंखला में संलग्न रहती है। स्वयं पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए भी ईश्वर से मंगल कामनाओं के लिए प्रार्थना करती रहती है। भूखे-प्यासे होने के पश्चात् भी पति का एहसास ही दिल को उमंगों से भर देता है। मेहंदी लगाकर, चूड़ी, साड़ी पहनकर और श्रृंगार कर नारी चाँद की प्रतीक्षा करती है। प्रेम रूपी चुनरी को ओढ़कर अपने प्रियतम की छबि को छलनी में निहारती है। नैनों में खुशियों रूपी संसार के काजल को लगाकर चाँद के नूर से अपने सौभाग्य को प्रबलता प्रदान करती है।

तेरी यादों का रिश्ता ही मेरी सोच में रहता है।

समय के साथ प्रीत का बंधन और भी गहरा होता है॥

भागती-दौड़ती जिंदगी में तेरी बेवजह बातें ही तो प्यार है।

तेरा मेरे जीवन में होना ही तो मेरा सच्चा श्रृंगार है॥

पति-पत्नी के रिश्ते में गुण-दोष, अच्छाई-बुराई सभी को समान रूप से स्वीकार्य किया जाता है। सौभाग्य भी तो उसका अनूठा श्रृंगार ही है। नारी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति में कहती है कि तुम ही तो मेरे सजने-संवरने का उद्देश्य हो। तुम्हारी एक प्रशंसा का वाक्य ही मुझे अनूठे उल्लास से भर देती है। जीवन रूपी बगियाँ में मेरे लिए सुगंध का स्वरुप हो तुम। पति पर सर्वस्व न्यौछावर करने वाली पत्नी कहती है कि मेरे जीवन की कांति तो तुम हो, तुम ही मेरे जीवन की पूर्णता हो। मन रूपी मंदिर में मैं सदैव आपका ही दर्शन करती हूँ। आपके साथ-साथ चलकर मुस्कान बिखेरना चाहती हूँ।

मेरे जीवन को सिर्फ तेरी मुस्कराहटों की प्यास है।

तेरे संग यूं ही मेरी जिंदगी बीतती रहे यही मेरी आस है॥

हर सुख-दु:ख में हाथ थामे रखना यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।

आज के इस जमाने में बड़ी असुरक्षा और भीड़ भारी है॥

दर्द को बाँटने वाले सच्चे हमदर्द होते है पति-पत्नी। इस करवाचौथ जीवन में खुशनुमा यादों को बटोरने का ध्येय बनाइयें। समय तो अपनी गति से प्रवाहित होता रहेगा, परन्तु यादें स्थायी और अविस्मरणीय होती है। इस रिश्तें की प्रगाढ़ता को मजबूत बनाने के लिए, पति-पत्नी के रिश्तें में समय अत्यंत महत्वपूर्ण है। विवाह के पश्चात् पति को प्राप्त करते ही नारी स्वयं का अस्तित्व भूल जाती है और प्रत्येक क्षण अपने पति के प्रति समर्पण भाव को दृष्टिगत रखती है। जहाँ व्यक्ति इस अविश्वासी दुनिया में एक क्षण भी किसी का भरोसा नहीं करता है, वहीं पति-पत्नी सात जन्मों के बंधन में विश्वास करते है और ईश्वर से प्रार्थना करते है कि प्रत्येक जीवन में वे ही जीवन साथी बनें। दाम्पत्य जीवन में कर्तव्यों के निर्वहन के साथ प्रेम के अनूठे क्षण से इस रिश्तें को अपनत्व के प्रकाश से आलौकित किया जा सकता है। चूड़ियों की खनखनाहट और पायलों की झंकार के स्वर से जीवन की मधुरता और रुचिकर बनें। जीवन में आनंद और उल्लास कभी न्यून न हो। प्रेम और सम्मान से हर करवाचौथ नवीन रंग से श्रृंगारित हो।

मेरा रूठना, तेरा मनाना, अंत में तेरा मेरा साथ ही रहेगा।

मेरा दर्प, तेरा अहं, अंत में तेरा मेरा साथ ही रहेगा।।

मेरी अक्षि का धुंधलापन, तेरे साथ की कान्ति, अंत में तेरा मेरा साथ ही रहेगा।

बुढ़ापे की लकड़ी, एक दूसरे का चश्मा, अंत में तेरा मेरा साथ ही रहेगा।।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

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