Home » धर्म संस्कृति » ललाट पर लगे तिलक से होती है पंथ की पहचान

ललाट पर लगे तिलक से होती है पंथ की पहचान

👤 admin6 | Updated on:12 May 2017 7:59 PM GMT

ललाट पर लगे तिलक से होती है पंथ की पहचान

Share Post

संतों के ललाट पर लगे तिलक से संतों के सम्प्रदाय एवं पंथ की पहचान होती है। इस समय सिंहस्थ महाकुंभ मेला क्षेत्र में अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संतों के मस्तक पर आकर्षक तिलक सभी को आकर्षित करते हैं। मस्तक एवं शरीर के अन्य भागों पर लगाये जाने वाले तिलक के संबंध में संत-महात्माओं के अलग-अलग मत है। मुख्य रूप से तीन प्रकार के सम्प्रदाय विशेष के संतों द्वारा चंदन, गोपी चंदन एवं रोली से तिलक लगाया जाता है। तीन प्रकार के तिलक मुख्य रूप से संतों की पहचान का बोध कराते हैं। वैष्णव सम्प्रदाय द्वारा ऊर्ध्वपुण्ड्र लगाया जाता है, शैव सम्प्रदाय द्वारा ऊर्ध्वपुण्ड्र लगाया जाता है। इसी प्रकार शाक्त सम्प्रदाय के अनुयायी रोली का तिलक ललाट पर लगाते हैं।

महंत श्री नृत्यगोपालदास महाराज ने तिलक की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि तिलक एवं शिखा भारतीय संस्कृति की पहचान है, जिस तरह साधारण मनुष्य शृंगार करते हैं उसी प्रकार यह साधु का एक मुख्य आभूषण है। वैष्णव सम्प्रदाय के ब्रह्मचारी श्री बापोली वालों का कहना है कि तिलक लगाना तीनों अवस्थाओं जाग्रत, स्वप्न एवं सुशुप्ति से ऊपर उठने में सहायक होता है एवं प्रभु को आत्मसात करने का माध्यम होता है। उन्होंने कहा कि तिलक लगाने का भौतिक उद्देश्य भी है। उन्होंने तिलक का भौतिक महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि आज के दौर में मनुष्य व्यर्थ चिंतन एवं मनन करता रहता है। उससे मस्तिष्क में उष्मा उत्पन्न होती है एवं तिलक उस उष्मा को शांत करने में सहायक होता है।

शैव सम्प्रदाय को मानने वाले त्रिपुण्ड्र लगाते हैं। वे इसकी तुलना ऊँकार से करते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि तिलक वैष्णवों और शैवों में एकता का प्रतीक भी है। ऐसी मान्यता है कि वैष्णव भगवान शंकर का त्रिशूल उर्ध्वपुण्ड्र के रूप में मस्तक पर लगाते है एवं शैव सम्प्रदाय को मानने वाले तिलक के रूप में भगवान श्रीराम के धनुष को धारण करते हैं।

शक्ति के उपासक शाक्त सम्प्रदाय के उपासक रोली का या काला तिलक लगाते हैं। वे इसे तेजोमय बिन्दु भी कहते हैं। इस बारे में दिल्ली से पधारे शाक्त सम्प्रदाय के उपासक श्री कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती जी का कहना है कि भारतीय संस्कृति के अनुसार स्त्री के लिए उसका सुहाग सर्वोच्च है एवं सुहाग की निशानी के तौर पर लाल रंग की रोली से मांग भरती है, ठीक उसी प्रकार हम लोग लाल रंग का तिलक एक सीधी खड़ी लकीर के रूप में लगाते एवं जो यह तिलक लगाता है वह अभागा नहीं होता। तिलक सौभाग्य की निशानी है एवं तिलक इस बात का बोध कराता है कि परमात्मा एक है।

नोटः (आलेख सिंहस्थ कुम्भ महापर्व की आधिकारिक वेबसाइट सिंहस्थउज्जैन.इन से साभार)

Share it
Top