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कुछ भी कह लो....बच्चे हमारी बात सुनते कहां हैं?

👤 Admin 1 | Updated on:9 April 2017 4:46 PM GMT

कुछ भी कह लो....बच्चे हमारी बात सुनते कहां हैं?

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नीलम अरोड़ा

बच्चा जब 5-6 साल का होता है तो मां को लगने लगता है कि वह समझदार हो गया है, लेकिन इस उम्र तक आते-आते बच्चे माता या पिता या अपने बड़ों की आज्ञा नहीं मानते या तो वह उनकी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं होते या सुनने के बाद उसे अनसुना कर देते हैं। उन्हें होमवर्क करने के लिए कहा जाए या कमरे की साफ-सफाई या खाने से पहले हाथ धोने की नसीहत दी जाए लेकिन वे आपकी एक नहीं सुनते। जो उनके मन में आता है वह वही करते हैं।

बच्चे ऐसा क्यों करते हैं

बच्चे इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि हम उन्हें ऐसा करने देते हैं और हम उन्हें जो आदेश देते हैं, उसका पालन करे, इस बात का इंतजार करते हैं। लेकिन बच्चे हमारी बात नहीं सुनते उल्टा वे जवाब देते हैं। मनोविदों की मानें तो बच्चे ऐसा करते हैं, क्योंकि वे अपने दिमाग से सोचते हैं, वे अपनी सीमाएं और ताकत को परखने की कोशिश करते हैं। कई बार बच्चे आपकी बात इसलिए भी नहीं मानते अगर उन्हें ज्यादा नियंत्रित किया जाए या ज्यादा सुरक्षा दी जाए तो वो बदला लेने के लिए कुछ ऐसा करना चाहते हैं, जिसमें उनके पैरेंट्स को बुरा लगे। हालांकि 6-10 साल तक के बच्चे ऐसा करते हैं, लेकिन बच्चा जब बड़ा हो जाता है तो पैरेंट्स के लिए उनकी बात न मानना बेहद स्ट्रेसफुल होता है। बच्चे सुनकर तुंरत प्रतिािढया करते हैं, यहां तक कि उन्हें कोई काम करने के लिए कहा जाए तो वह तुरंत मना कर देते हैं। सवाल है बच्चे और पैरेंट्स के बीच में तनाव की स्थिति न पैदा हो और वह उनका सम्मान और उनके साथ सहयोग करें, इसके लिए क्या करना चाहिए?

आपको समझौता कहां करना पहले से सोच लें

अगर आपकी बेटी को प्रतिदिन जैम और ब्रेड खाना पसंद है तो इस बात पर खींझना या उसे मना करना, यहां पर पैरेंट्स को समझौता करना चाहिए। सोच लें कि यह भी बच्चे का एक ऐसा व्यवहार है जो धीरे-धीरे अपने आप बदल जायेगा। अगर वह किसी पार्टी में ऑरेंज कमीज के साथ लाल पेंट पहनना चाहती है तो इसमें भला आपको क्या दिक्कत है? हो सकता है वह इसमें ही अच्छी लगे इसलिए आपको बच्चे के साथ कहां समझौता करना है, इसकी सीमा रेखा पहले तय करें।

बच्चों को समझें

अगर बच्चा आपसे कहता है कि उसे शाम के समय नहाना है और आप उसे मना करती हैं और वह गुस्सा हो जाता है या वह अपने दोस्तों के साथ बाहर खेलने के लिए जाता है और आप उसे घर में बुला लेती हैं तो भी उसे बुरा लगता है। आपको अपने नजरिये में बदलाव लाना होगा। उसे समझाना होगा कि पूरा दिन बाहर खेलने में गुजारा नहीं जा सकता, उसे और भी कई काम करने हैं, यदि वह ऐसा नहीं करता तो इससे आपके दूसरे और काम प्रभावित होते हैं। अगर वह आपसे 5 मिनट और मांगे तो उसके साथ नरमी से पेश आयें; क्योंकि ऐसी स्थिति में उसके साथ गुस्सा होने पर भी बात बिगड़ सकती है।

बच्चे को अच्छा व्यवहार करना सिखाएं

मनोविदो का मानना है कि अनुशासन से जरूरी नहीं कि बच्चे को नियंत्रित किया जा सके। इसका मतलब है कि वह अपने को नियंत्रित कैसे करें। हर बार उसके द्वारा किये जाने वाले गलत व्यवहार पर टोकने की बजाय उसे अपने अच्छे व्यवहार से अच्छे व्यवहार की परिभाषा समझाएं।

सीमा रेखा बनाएं

हर बच्चे के लिए सीमा रेखा बनाना जरूरी है। आपके बच्चे को नियमों का पालन करने में क"िनाई हो सकती है, माता-पिता को उनके लिए समाधान निकालना होता है। यदि वह आपकी बात नहीं मानता तो उससे बात करें। अगर उसे लगता है कि आप उसकी समस्या को लेकर सचमुच फामंद हैं तो वह आपकी बात मान लेता है।

बच्चे की भावनाओं को समझें

अगर आप उसे कुछ करने के लिए मजबूर करते हैं तो वह गुस्सा हो जाता है, लेकिन ऐसे में आपको उसके गुस्से और निराशा को समझना होगा; क्येंकि हो सकता है बच्चा अपनी भावनाओं को सही तरह से व्यक्त न कर पा रहा हो। बच्चे तेज आवाज में तभी चिल्लाते हैं, जब वह चाहते हैं कि बड़े उन्हें सुनें। आपको उसके गुस्से को समझना होगा और उसे घर के किसी दूसरे हिस्से में अकेला छोड़ दें ताकि वह खुद को शांत कर सकें।

सकारात्मक रहें

बच्चे को यह कहने की बजाय कि वह क्या कर सकता है, कहें कि उसे क्या नहीं करना है। `घर में बॉस्केटबॉल मत खेलो' कहने की बजाय `अपनी प्रैक्टिस बरामदें में जाकर करो' कहने से आप उसे ज्यादा अच्छी तरह से समझा सकती हैं।

खुद को परखें

अपनी पैरेंटिंग स्किल को जांचिए और परखिए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि बच्चे के प्रति आप सख्त रवैय्या रखती हैं। मनोविद इस बात पर बल देते हैं कि माता-पिता का व्यवहार सही होना चाहिए। यदि आप चाहते हैं कि बच्चे आपकी बात सुनें और आप खुद उस बात को न मानें ऐसे में भला डबल स्टैंर्ड बच्चे को कंफ्यूज ही तो करेगा। बच्चे से अपनी अपेक्षाएं साफ स्पष्ट शब्दों में कहें, उसे धमकाएं नहीं।

समझौता करें

बच्चे के साथ वह बातें न करें, जिसमें आपको लगता है कि वह मना कर सकता है। यदि उसका कोई दोस्त उसके पास आता है और वह उसके साथ अपना खिलौना शेयर नहीं करना चाहता तो उसके दोस्त के आने से पहले उस खिलौने को कहीं छुपा दें। बच्चे के ऑपिनियन का भी सम्मान करें, क्योंकि इससे न केवल पैरेंट के साथ उसके अच्छे रिश्ते होते हैं बल्कि बच्चा अपने पियर ग्रुप के साथ भी सामजस्य स्थापित करना जल्दी सीखता है। आप जितना धैर्य बरतेंगे, उतना ही बच्चे को जल्दी समझा सकेंगे कि माता-पिता की बात न मानना गलत है।

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