अनेकता में एकता के सिद्धांत पर मंडराता खतरा
वीना सुखीजा
गुना (गुजरात) में जब स्वयंभू गौ रक्षकों ने चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की व उसका वीडियो बनाया जो वायरल हो गया तो उस समय तक गाय संबंधित हिंसा व हत्याओं पर खामोश रहे फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुप्पी तोड़ी और जबरदस्त बयान दिया। अगस्त 2016 में उन्होंने कहा, "मुझे यह देखकर दुःख होता है कि गौ रक्षा के नाम पर दुकानें चलाई जा रही हैं। 80 फ्रतिशत तथाकथित गौ रक्षक असमाजिक तत्व हैं जो दिन में गौ रक्षक बने फिरते हैं और रात में अपराधिक गतिविधियों में लिप्त होते हैं।' फ्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से कहा कि वह ऐसे तत्वों पर डोसियर (चरित्र का लेख फ्रमाण पत्र) तैयार करें ताकि कानून व्यवस्था को बनाये रखने में आसानी हो।
लेकिन राज्य सरकारों, विशेषकर बीजेपी शासित फ्रदेशों पर फ्रथानमंत्री की बात का कोई असर नहीं हुआ और गाय के नाम पर हिंसक गतिविधियां निरंतर बढ़ती जा रही हैं, जैसा कि अलवर (राजस्थान), गुवाहाटी (असम), उज्जैन (मध्य फ्रदेश) आदि की घटनाओं से स्पष्ट है, जिनका चिंताजनक पहलू यह भी है कि अधिकतर मामलों में अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजने की बजाय पीड़ितों के विरुद्ध कार्यवाही हुई, उनसे ही सवाल किये गए। कुछ राज्यों में तो इन स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदारों को अधिकारिक मान्यता फ्रदान की गई। महाराष्ट्र में राज्य सरकार ने बीफ फ्रतिबंध को लागू करने की जिम्मेदारी गौ रक्षकों को दी। उसने 'अवैतनिक पशु कल्याण अधिकारी' का पद सर्जित किया और ऐसा एक अधिकारी फ्रत्येक जिले में तैनात कर दिया। जिन लोगों को इस पद पर नियुक्त किया गया है, उन सभी का सम्बंध संघ परिवार के किसी न किसी संग"न से है या वह पूर्व में अनधिकृत तौरपर सांस्कृतिक पहरेदारी करते थे।
हरियाणा में गौ रक्षक दल का दावा है कि उसके 5000 कार्यकर्ता हॉकी लेकर 240 किमी लम्बे दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे की पेट्रोलिंग करते हुए उन ट्रकों को रोकते हैं जिन पर बीफ या गाय ट्रांसपोर्ट करने का शक होता है। इसी फ्रकार की 'सांस्कृतिक पुलिस' हिन्दू युवा वाहिनी के रूप में उत्तर फ्रदेश में भी है, जो गाय से लेकर फ्रेम सम्बन्धों तक पर पहेरा दे रही है और अगर मामला अंतर्धार्मिक फ्रेम का हो तो हत्या तक की जा रही है, जैसा कि हाल में बुलंदशहर में एक 60 वर्ष के व्यक्ति की हत्या से स्पष्ट है, जिस पर फ्रेमी जोड़े को सहयोग करने का शक था। वाहिनी का ग"न 2002 में योगी आदित्यनाथ ने किया था, वह अब उत्तर फ्रदेश के मुख्यमंत्री हैं लेकिन वाहिनी उन्हीं को रिपोर्ट कर रही है।
इस पृष्"भूमि में यह निष्कर्ष सहज ही निकाला जा सकता है कि फ्रधानमंत्री मोदी का अगस्त 2016 का बयान मात्र कॉस्मेटिक लीपापोती था और बीजेपी व उसकी राज्य सरकारें अच्छी तरह से जानती थीं कि उन्हें कुछ नहीं करना है और स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदारों को भी मालूम था कि उनके विरुद्ध कुछ नहीं होगा। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल के दौरान स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदारों को फलने फूलने का भरपूर अवसर फ्रदान किया गया है। यह अकारण नहीं और न ही इसका उद्देश्य मात्र गौ रक्षा है।
अगर उद्देश्य गौ रक्षा होता तो आज बीजेपी व उसके सहयोगी दलों के पास लोकसभा में दो तिहाई बहुमत है, जिसके आधार पर इस संदर्भ में पूरे भारत के लिए कानून बनाया जा सकता था, लेकिन उसने गोवा, असम व मिजोरम में, जहां आज उसकी सरकारें हैं, यह चुनावी वायदा किया कि वह बीफ सेवन पर फ्रतिबन्ध नहीं लगायेगी। तो स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदारों को खुली छूट देने का मकसद कुछ और है, जिसे समझने के लिए पहले एक बात बताना आवश्यक है।
1925 में अपने ग"न के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का उद्देश्य समाज को अपने दृष्टिकोण के अनुसार भीतर से परिवर्तित व अनुशासित करने का रहा है, जिसे वह हिन्दुओं की फ्रभावी सुरक्षा के लिए आवश्यक समझती है। यह मात्र संयोग नहीं है कि संघ के संस्थापक के बी हेडगेवार ने अपने स्वयंसेवकों के लिए ब्रिटिश पुलिस वर्दी फ्रयोग करने का निर्णय लिया। किंग्स इंडिया इंस्टिट्यूट, लन्दन, के फ्रोफेसर ािढस्टोफे जफ्रेलॉट के अनुसार आरएसएस समाज को अपनी पुलिस देने की इच्छुक थी।
दरअसल, अपनी 'पुलिस' से ही सांस्कृतिक पहरेदारी सम्भव थी, ताकि अपने दृष्टिकोण का समाज विकसित किया जा सके, यह तय किया (बल्कि थोपा) जा सके कि क्या खाना है, क्या पहनना है, कौन सी भाषा बोलनी है, किससे फ्रेम करना है, किससे विवाह करना है, गर्भ संस्कार से कैसे उत्तम संतति उत्पन्न करनी है, मनुस्मृति को पुनः किस फ्रकार लिखना है, हमारी फ्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धियां यह थीं, पौराणिक कथाओं पर आधारित हमारा इतिहास यह था आदि। जो हिन्दू राष्ट्र के इस एकरूपतावादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से सहमत नहीं है वही राष्ट्र विरोधी है ...पंसारे है, ढबोलकर है, कालबुर्गी है। सांस्कृतिक पुलिसिंग के लिए 80 व 90 के दशकों में बजरंग दल था, अब भारतीय गौ रक्षा दल और अन्य स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदार हैं।
राज्य स्वयं तो अल्पसंख्यकों, दलितों व संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विरोधियों को परेशान कर नहीं सकता, इसलिए यह काम स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदारों के लिए छोड़ दिया जाता है, ताकि 'बहुसंख्यक' की भावनाओं को संतुष्ट रखा जा सके, धार्मिक व जातीय आधार पर चुनावों के लिए राजनीतिक धुर्वीकरण किया जा सके और यह दिखाया जा सके कि वह ही समाज का फ्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह बातें सांस्कृतिक पहरेदारी को वैधता फ्रदान करती हैं, आखिरकार जनता की इच्छा कानून से ऊपर है बल्कि वह ही कानून है। अब तो अदालते भी 'धार्मिक भावनाओं' को मान्यता देने लगी हैं।
तीन तलाक पर विराम लगना चाहिए, यह सही है। लेकिन मोदी सरकार ने जो इस मुद्दे को उ"ाया है तो इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं से हमदर्दी नहीं और न ही उन्हें बराबरी का अधिकार दिलाना है, बल्कि एकरूपतावादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को फ्रोत्साहित करना है। गुलदस्ता वही सुंदर लगता है जिसमें हर रंग के फूल हों। अनेकता में एकता का भी यही सिद्धांत है। लेकिन पिछले तीन वर्ष के दौरान मोदी सरकार ने एक रंग का ही गुलदस्ता बनाने का फ्रयास किया है और इसमें स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदारों की बड़ी भूमिका रही है। गांधीजी के सपनों के हिन्दू राष्ट्र (राम राज्य), जिसमें बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति, भाषा व संस्कृति के विकास की गुंजाइश है, पर आरएसएस के सपनों का हिन्दू राष्ट्र थोपने का फ्रयास रहा है जिसमें केवल एक ही-दृष्टिकोण के लिए स्थान है, और अगर आप इससे सहमत नहीं हैं तो आप राष्ट्र विरोधी हैं, आपके लिए स्वयंभू सांस्कृतिक पहरेदार हैं। यही चिंताजनक व दुर्भाग्यपूर्ण बात है।