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शॉपिंग मॉल्स बस थोड़े दिनों के साथी हैं

👤 admin 4 | Updated on:22 May 2017 6:01 PM GMT

शॉपिंग मॉल्स  बस थोड़े दिनों के साथी हैं

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संजय श्रीवास्तव

विकसित देशों में शॉपिंग माल्स की कुल उम्र बस दो दशक करती जा रही है। क्या वाकई दो दशक से चलन में आये शॉपिंग मॉल्स इस तरह दम तोड़ देंगे।

हालांकि यह अमेरिकी परिघटना है पर इससे इस क्षेत्र विशेष का भविष्य कैसा होगा इसके वैश्विक संकेत मिलते हैं। अमेरिका में खुदरा खरीदारी की संस्कृति या रिटेल कल्चर खात्मे की ओर है। वहां दुकानों से खुदरा खरीदारी में बेहद गिरावट दर्ज की जा रही है। देखा जा रहा है कि लोगों का दुकानों, डिपार्टमेंटल स्टोर्स में आना जाना कम से कम होता जा रहा है। अमेरिका में एक चर्चा आम है, क्या शॉपिंग माल्स के दिन अब लद गये? जिस तरह से 3300से ज्यादा डिपार्टमेंटल स्टोर्स और बड़े-बड़े माल्स बंद हो गये क्या एक दिन सभी शॉपिंग माल्स बंद हो जायेंगे? क्या जगमगाते, लकदक शॉपिंग माल्स एक दिन वीरान हो जायेंगे ये सोचने में भी क"िनाई होती है पर इस क्षेत्र के विशेषज्ञों और आंकडेबाजों का कहना है लोगों की मॉल्स तक जाने की अभिरुचि में लगातार उदासीनता आ रही है। विकसित देशों में ऑनलाइन शॉपिंग और खरीदारी के कुछ नये चलन शॉपिंग माल्स को दो दशकों में बाहर कर देंगे। भले ही एकबारगी इस बात पर यकीन न हो पर अमेरिका में हजारों मॉल्स का बंद होना इस तरफ साफ इशारा तो है। यहां लोग बेहद मामूली और रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजें पास की सामान्य डिपार्ट्मेंटल स्टोर्स से लेते हैं पर जब हाई एंड या बड़े या विलासिता वाली अथवा विशिष्ट वस्तुयें खरीदनी होती है तो वे मॉल्स या बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर्स की बजाय स्मार्टफोन की ओर बढ़ते हैं।

एक शॉपिंग माल्स और डिपार्ट्मेंटल चेन की 68 शाखाएं बंद हो चुकी हैं। इस बंदी के चलते उस कंपनी को 10,000 कर्मचारियों को हटाना पड़ा जिसमें 60 फीसदी महिलाएं थीं। अपने देश में आज भी लगातार नये नये शॉपिंग माल्स खुलते जा रहे हैं, कई मॉल घाटे में चलने के बावजूद अपने को जिंदा रखे हुये हैं यहां इस तरह के संकट का कोई आहट नहीं है पर जिस तरह डिजिटलाइजेशन का अंधाधुंध दौर यहां चल रहा है, खरीदारी का पैटर्न बदल रहा है उससे तो यही लगता है कि देर सबेर शॉपिंग माल्स पर संकट आयेगा ही। अमेरिकी और विकसित देशों के शॉपिंग माल्स अपने को नयी आफत के अनुरूप तैयार कर रहे हैं, भले ही यह भी उनके बचने की कोई गारंटी नहीं है, पर जब अपने देश में शापिंग माल्स पर इस तरह का संकट आयेगा तो अपने शॉपिंग माल्स भी इसके लिये तैयार होंगे कहना मुश्किल है। विकसित देशों के नये पुराने स्थापित शॉपिंग माल्स लोगों की आदत, फ्राथमिकताएं, फ्रवृत्तियां, अभिरुचियां और जरूरतें बदल रही हैं वे फिजिकल से ज्यादा डिजिटल होते जा रहे हैं। बहुतेरे शॉपिंग माल्स ने विशाल टच पीन लगाया है इसमें खरीदार स्मार्टफोन या टैब से बेहतर और विविधतापूर्ण खरीदारी का अनुभव लाभ ले सकता है। मैजिक मिरर के तौरपर ऐसे शीशे की सुविधा दी जिसमें कपड़ा या किसी खास परिधान पहने बिना अपने शरीर पर वह फिट हो रहा है या नहीं जांचा जा सकता है, रंगों और पैटर्न को भी बदल बदलकर देखा जा सकता है।

लेकिन स्मार्टफोन से ग्राहक को अपनी तरफ खींचने की कवायद को जल्द की कुछ स्मार्टफोन एप बेकार करने वाले हैं। बड़े शॉपिंग माल्स ने बड़े-बड़े होलोग्राफिक डिस्प्ले लगाये, ग्राहकों के आंकड़ा विश्लेषण से उनके बारे में सब कुछ जाना, खरीदारी में पर्सनलाइज्ड करने की कोशिश की, उनको सूचनाओं से लादे रखा, पहुंच बनाई, पसंदगी नापसंदगी जांची अब वे खास तरह के रोबोट जिन्हें ग्लीमिंग रोबोट कहा जाता है इस्तेमाल कर रहे हैं। ये रोबोट ग्राहक का चेहरा पढ़ लेते हैं, भांप लेते हैं ग्राहक की निगाह कि वह क्या पसंद कर रहा है, उसका मूड क्या देखने के बाद कैसा है। वे जान जायेंगे कि ग्राहक की फ्राथमिकताएं क्या है, उसे ग्राहक की पृष्"भूमि पता होगी और यह अनुमान भी कितना खर्च कर सकता है। वह ग्राहक के खरीदारी अनुभव को शानदार बना देंगे। माल्स में थ्रीडी फ्रिंटिंग का भी फ्रबंध होगा, अपने पसंद का सामान और डिजाइन वहीं बनवा सकते हैं। भुगतान के लिये चेआउट काउंटर की झंझट से मुक्ति, वर्चुएल फिटिंग रूम, वर्चुएल रियलिटी हेडसेट, 90 मिनट की एक्सफ्रेस डिलीवरी, ड्रोन डिलीवरी की सुविधा। पर मुसीबत यह है कि ग्राहक तो शॉपिंग माल्स तक आना ही नहीं चाहता वह घर से ही खरीदना चाहता है।

पर इन सबके बावजूद शॉपिंग माल्स की दशा नहीं सुधर रही। लगातार बंद होते जा रहे शॉपिंग मॉल मेडिकल सेंटर, सीनियर रेजीडेसी सेंटर, डाटा सेंटर, आलीशान जिम या फिर थियेटर और फूडकोर्ट में तब्दील हो रहे हैं या यहां दूसरे तरह के कारोबार खोले जा रहे हैं। आबादी के केंद्र में होने वाले कई शॉपिंग माल्स तो विशालकाय परचून की दुकान में तब्दील हो गये हैं। शॉपिंग माल्स नये दौर में अपना अस्तित्व बचाने के लिये संघर्षरत हैं वे अपना कायांतरण और कायाकल्प में लगे हैं। व्यापार के चलन और दूसरे व्यावसायिक फ्रवृत्तियों का अध्ययन करने वाले विषय विशेषज्ञों का कहना है कि ये कायाकल्प शॉपिंग माल्स का सफाया करने में लगे हैं और इस तरह तो 90 फीसदी तक माल गायब हो जायेंगे उनका भी रूप स्वरूप कुछ अलग ही होगा। जाहिर है, ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर आये दिन जबरदस्त सेल चलती है और अरबों की खरीदारी हो जाती है। अब बहुतों की धारणा है कि दुकान पर चीजें अपेक्षाकृत महंगी मिलती है जबकि शॉपिंग साइट पर सस्ती। ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर खरीदार बढ़ रहे हैं, कई कंपनियां अपने नये उत्पाद लांच करने का सबसे बेहतर मंच ऑनलाइन शॉपिंग साइट को मानती है कुछ तो कई उत्पाद केवल ऑनलाइन ही बेच रही हैं, वे उनके स्टोर्स पर उपलब्ध ही नहीं हैं। स्मार्टफोन और जूते-चप्पल कपड़े ही नहीं आटा, चावल, दाल और सब्जियां भी लोग ऑनलाइन खरीद रहे हैं। न दुकान तक जाना न सामान ढो कर लाना। अब हर हाथ या हथेली में माल है, खरीदारी उंगलियों की कुछ हरकतों से संभव है, विभिन्न तरह के एप खरीदने और भुगतान के लिये हैं। ऑनलाइन सौदे आकर्षित करने वाले हैं ये सामान को उलट पुलटकर घुमाफिराकर 360 डिग्री पर देखने की आजादी देते हैं। पर कुछ विशेषज्ञों की राय यह भी है कि शॉपिंग माल्स दो दशकों के भीतर तो कतई खत्म नहीं होने वाले। कम से कम विकासशील देशों में तो इनकी उम्र बहुत लंबी है। ऑनलाइन खरीदारी शॉपिंग माल को असर तो पहुंचायेगी पर इन्हें खत्म कर दे ऐसा नहीं है खरीदारी महज एक मशीनी काम नहीं है। यह भावनात्मक भी है, खरीदारी करने का जो सुख चाहता है वह उसको दुकान पर जाकर ही मिलता है, स्मार्टफोन पर नहीं, लोग खरीदने से पहले वस्तु को छूने परखने, महसूस करने का आनंद उ"ाना चाहते हैं। कई बार लोग खरीदारी करने कम मनोरंजन करने और एक दूसरे के मिलने के बहाने भी शॉपिंग माल्स की ओर रुख करते हैं। यह दलीलें समय के साथ कमजोर पड़ती जा रही हैं, आंकड़े इसके गवाह हैं। ऐसे में शॉपिंग माल्स आज नहीं तो कल संकट में आयेंगे पर शॉपिंग माल्स के साथ-साथ अन्य व्यवसाय, उत्पादन एवं निर्माण तथा विपणन क्षेत्र, कर्मचारियों, तकनीकिज्ञों की एक लंबी श्रृंखला भी जुड़ी होती है आसन्न संकट उनके लिये भी गंभीर है, भले यह अपने देश के लिये किंचित दूर हो।

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