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बच्चों को रास्ता दिखाओ, उनके लिए चलो मत

👤 admin 4 | Updated on:22 May 2017 6:04 PM GMT

बच्चों को रास्ता दिखाओ, उनके लिए चलो मत

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नीलम अरोड़ा

बच्चों को जीवन में किसी तरह की समस्याओं का सामना न करना पड़े इसके लिए कुछ पैरेंट्स निरंतर प्रयासरत रहते हैं। समस्यारहित जीवन प्रदान करने का प्रयास करते हैं। वह अपने बच्चों के रास्ते से तमाम अड़चनों व समस्याओं को हटाने में लगे रहते हैं। यह पैरेंट्स अपने बच्चों के शुरुआती वर्षों में उनके लिए रक्षाकवच बनकर खड़े रहते हैं, किशोरावस्था में उनकी सुरक्षा में लगे रहते हैं, उनके कॅरिअर चयनवर्षों के दौरान उनके लिए महत्वपूर्ण फैसले लेते हैं और जब वह प्रोफेशनल्स बन जाते हैं या अपने खुद के परिवार को शुरु करते हैं तब भी उनके प्रबन्धन का प्रयास करते हैं या उनके जीवन में दखल देते हैं।

फिर ऐसे पैरेंट्स हैं जो अपने बच्चों के लंबित पड़े गृहकार्य को पूर्ण करते हैं, उस समय बोलते हैं जब उनके बच्चों को खुद अपनी राय रखनी चाहिए। दुर्भाग्य से इसके बुरे नतीजे होते हैं, क्योंकि ऐसे बच्चे जो अकेले दम पर कुछ नहीं कर सकते, उन्हें हर समय दिशानिर्देश व निगरानी की आवश्यकता बनी रहती है।

यह जो दो प्रकार के पैरेंट्स का पा किया गया है, इन्हें डॉ. स्वाती लोढा अपनी नवीनतम पुस्तक 'डॉन्ट रेज योर चिल्ड्रन, रेज योरसेल्फ' में 'बुलेटप्रूफ पैरेंट्स' कहती हैं। उनके अनुसार बुलेटप्रूफ पैरेंटिंग के दो मुख्य लक्षण हैं। एक यह कि भौतिक सुरक्षा, जिसमें पैरेंट्स द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनके बच्चों को कोई भौतिक या शारीरिक नुकसान न पहुंचे। दूसरा तत्व वास्तव में खतरनाक है क्योंकि पैरेंट्स अपने बच्चों की मानसिक बुलेटप्रूफिंग करते हैं।

दरअसल, आज के समय में अधिकतर पैरेंट्स यह सुनिचित करने को प्राथमिकता देते हैं कि उनके बच्चे हमेशा उनकी सख्त निगरानी में रहें बजाए इसके कि वह किसी अनहोनी दुर्घटना का शिकार होने का खतरा उ"ाएं। अखबारों व इलैक्ट्रोनिक मीडिया में लगभग रोज ही बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं, जिनसे न सिर्फ अपने बच्चों के लिए निरंतर डर बना रहता है बल्कि यह आशंका भी रहती है कि निकट भविष्य में इस चिंताजनक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। यद्यपि बहुत से लोग यह बहस करते हैं कि बच्चों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में कोई वृद्धि नहीं आयी है बस अब इसकी रिपोर्टिंग ज्यादा होने लगी है। इनमें से बात चाहे जो भी सही हो, बुलेटप्रूफ पैरेंट्स के पास अपने बच्चों के लिए नियम निर्धारित करने के तर्क अवश्य हैं। इसलिए किसी शायर का शेर है-

माहौल के जहर से जो लोग वाकिफ हैं

अपने बच्चों को घर से निकलने नहीं देते

यही कारण है कि शालिनी शर्मा अपनी बेटी को किसी सहेली के यहां सोने (स्लीपओवर) और ओवरनाइट पिकनिक की अनुमति नहीं देती। वह अपनी बेटी को उस सहेली के घर पर भी दिन में जाने की इजाजत नहीं देती जिसके पैरेंट्स को वह अच्छी तरह से नहीं जानती हैं। लेकिन कुछ पैरेंट्स इस डर को एक कदम और आगे ले जाते हैं।

मधु गुप्ता के बच्चे जब गार्डन में खेल रहे होते हैं, तो वह निरंतर उन पर अपनी पैनी निगाह बनाए रखती हैं। वह साए की तरह उनका पीछा करती रहती हैं। यह सब "rक नहीं है। डॉ. स्वाती लोढा का सुझाव है कि बच्चों को गिरने दो तभी तो वह अपने आपको उ"ाना व संभालना सीखेंगे। उन्हें चोट लगने दो, तभी वह सीखेंगे कि चोट के जख्म भर जाते हैं। उन्हें अपने फैसलों पर विश्वास करना सीखने दो तभी वह गति व फासले का अंदाजा लगाना सीखेंगे। यह जीवन के बुनियादी कार्यक्षेत्र हैं जहां बच्चे वास्तविक जीवन की गतिविधियों से ही सीखते हैं।

दरअसल, यहीं से समस्या खड़ी होती है। आधुनिक युग के पैरेंट्स अपने बच्चों के बारे में यह नहीं चाहते कि वह अपनी सीमाओं की परीक्षा लें। रोजमर्रा की जो बुनियादी गतिविधियां हैं वह भी बच्चों के लिए पैरेंट्स स्वयं करना चाहते हैं, जिससे बच्चों के पास काम करने के लिए कुछ होता ही नहीं, वह निपिय हो जाते हैं।

इसका नतीजा यह होता है कि बच्चे अपने इलैक्ट्रोनिक गैजेट का स्विच ऑफ करना भूल जाते हैं, वह अपनी डिनर प्लेट उ"ाकर सिंक में नहीं रखते, वह अपना टूटा बटन तक नहीं टांक सकते, उन्हें सब्जियां तक खरीदना नहीं आतीं... उनके लिए सारा काम उनके पैरेंट्स ही करते हैं-पहले खुशी-खुशी और फिर बाद में मन मसोसकर। इस आधुनिक युग में बहुत से पैरेंट्स तो ऐसे भी हैं जो प्राइवेट जासूसों की सेवा लेते हैं ताकि नाईट पार्टीज में अपने बच्चों पर निगरानी रख सकें।

लेकिन जब आप स्कूलों में बढ़ती हिंसा, ड्रग्स सेवन, किशोरावस्था में गर्भाधारण, सड़क दुर्घटनाओं, बालयौन हिंसा आदि के बारे में दिन रात पढ़ते हैं तो पैरेंट्स द्वारा अत्याधिक सुरक्षात्मक हो जाना उचित भी प्रतीत होता है। लेकिन सवाल यह है कि बच्चों को सही व गलत की शिक्षा देने की बजाए उन पर निरंतर निगरानी रखने से क्या हम उनके विकास में बाधक नहीं बन रहे हैं कि वह अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करने के गुण विकसित नहीं कर पाते?

बुलेटप्रूफ पैरेंट्स के मन में हमेशा डर बना रहता है और इसलिए वह अपने बच्चों पर निरंतर निगरानी रखते हैं और उनका साए की तरह पीछा करते रहते हैं। इस प्रकार के पैरेंट्स अपने बच्चों के जीवन में आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप करते हैं, अत्याधिक प्रोएक्टिव होते हैं और बच्चों को जरूरत से ज्यादा सहारा देते हैं। इससे बच्चों को नुकसान ही होता है। बच्चे में खुद अपने पैरों पर खड़े होने की सलाहियत व अपने फैसले स्वयं लेने का साहस विकसित नहीं हो पाता।

अगर बच्चों की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया जाएगा तो ऐसे बच्चों का विकास होगा जो समाजिक तौरपर अलग-थलग रहने वाले हेंगे। अगर हर मामले में पैरेंट्स का हस्तक्षेप रहेगा और वह ही अपने बच्चें की सभी समस्याओं का समाधान करेंगे तो बच्चे स्कूल में, अपने दोस्तों के साथ सही से एडजस्ट नहीं हो पाएंगे और कभी भी अलग-अलग स्थितियों का प्रबंधन करना नहीं सीख पाएंगे। आपके जीवन का मंत्र किसी कीमत पर भी यह नहीं होना चाहिए-चाहे जो कुछ हो जाए हम अपने बच्चों की सुरक्षा व समर्थन करेंगे।

बुलेटप्रूफ पैरेंट्स के जीवन का फोकस उनके बच्चे होते हैं। उनके बच्चे सुरक्षित होते हैं और बड़े होने पर भी उन्हें अपने पैरेंट्स का समर्थन मिलता रहता है। बुलेटप्रूफ पैरंट्स अपने बच्चों से बहुत अधिक प्रेम करते हैं और गहराई से उनसे जुड़े होते हैं। वह बहुत भरोसेमंद भी होते हैं। लेकिन उनके बच्चे निर्भर रहने लगते हैं, खतरा उ"ाने से डरते हैं, अपने फैसले स्वयं नहीं कर पाते, न किसी चीज की पहल करते हैं और न कुछ नया करने का प्रयास करते हैं।

बच्चों को इतनी मजबूती से मत पकड़े रखो कि वह गिरे ही नहीं। जब वह बड़े हो जाएंगे तो वह न तो उन्हें हमें पकड़ने देंगे और न ही अपने आपको संतुलित कर पाएंगे। बच्चों को रास्ता दिखाओ, लेकिन उनके लिए चलो मत। उन्हें शब्द सिखाओ, लेकिन उनके लिए बोलो मत। बच्चों को देखने दो, समीक्षा करने दो, फैसला करने दो, गलती करने दो और सुधरने का अवसर दो। उनके लिए उपलब्ध रहो, लेकिन केवल उनके लिए ही नहीं।

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