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केले निकट जो बेर

👤 admin5 | Updated on:20 May 2017 3:56 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारा

भारत के पति पाकिस्तान की दुष्टता भरी करतूतें देखकर छव सौ वर्ष पूर्व पैदा हुए संत कबीर की निम्नांकित पंक्तियां बरबस याद हो आती है,

मारी मरौं कुसंग की केले

निकट जो बेर।

ओह झूलै ओह चीरिय

साकत संग न हेर।।

अर्थात् बुरी संगत से आहत हुए किसी भद व्यक्ति की हालत वही होती है जो बेर के नजदीक लगे हुए केले के पत्तों की होती है। केले के कोमल एवं बड़े आकार के पत्ते हवा के झोकों से जब बेर के सामने पंखा होंकने के समान झूलते हैं तो बेर के कांटे उन कोमल पत्तों को चीर कर छलनी कर देते हैं। इस आलोक में यदि गहराई से देखा जाए तो पाकिस्तान रूपी बेर का पेड़ भारत रूपी केले को पिछले सात दशको से तंगो-तबाह करते आ रहा है। सर्वविदित है कि महात्मा गांधी सहित भारत के तमाम बड़े नेताओं ने भारी मन से भारत के विभाजन को स्वीकार किया था लेकिन किसी को यह कल्पना नहीं हुई कि भारत से कटकर बनने वाला नया देश पाकिस्तान बेर की तरह भारत को डंक मारता रहेगा।

स्वतंत्रता के अवसर पर कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह ने जैसे ही कश्मीर को भारत में विलय करने का समझौता किया उसी समय पाकिस्तान ने कबायलियों के साथ अपनी सेना को मिलाकर भारत पर हमला बोल दिया और बीच-बचाव होने के दरम्यान ही कश्मीर का एक अहम हिस्सा अपने कब्जे में कर लिया जो आज के दिन पी..के. (पाक ओकुपायड कश्मीर) के नाम से जाना जाता है। भारत संयुक्त राष्ट्र में बार-बार यह ऐलान कर चुका है कि पूरा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है लेकिन भारत को चिढ़ाने के लिए पाकिस्तान ने पी..के. के गिलगित समेत एक बड़ा हिस्सा चीन के हवाले कर दिया है जहां पर चीन आजकल अपने स्तर से मूलभूत संसाधन खड़े कर रहा है। अभी-अभी चीन ने विश्व के 68 देशों के षासको को अपनी राजधानी बीजिंग में बुलाकर ``एक बेल्ट एक रोड'' (वन बेल्ट वन रोड) का एक नया पकल्प दुनिया के सामने पेश किया है जिसमें एशिया, यूरोप एवं अफ्रीका के देश शामिल हैं। भारत ने एक बेल्ट एक रोड के इस सम्मेलन का यह कह कर बहिष्कार कर दिया है क्योंकि पी..के. भारत का अभिन्न अंग है जिसके चलते पाकिस्तान को कोई हक नहीं बनता कि वह भारत का हिस्सा चीन को सौंप दे। चूंकि चीन के इस कदम से भारत की सम्पभुता पभावित होती है इसलिए भारत किसी भी कीमत पर चीन के ओ.बी..आर. पकल्प का समर्थन नहीं करेगा। पाकिस्तान ने वजूद में आने के बाद दर्जनें बार भारत को परेशान करने के कपटपूर्ण पयास किये हैं तथा पाक के व्यवहार से केले एवं बेर की कबीर द्वारा की गई तुलना अक्षरशः सत्य सिद्ध होती है।

कुछ दिन पहले ही तो पाकिस्तान ने भारत की नेवी के एक अवकाश पाप्त अधिकारी श्री कुलभूषण जाधव को ईरान से अपहृत करके उसको आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोप में कोर्ट मार्शल करके फांसी की सजा सुना दी है। जैसे ही निर्दोश कुलभूषण को फांसी देने की खबर फैली तो पूरा भारत देश उद्वेलित हो उ"ा। पाकिस्तान चाहता था कि कुलभूषण को यथाशीघ्र फांसी पर लटका दिया जाए। भारत को जब कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा तो भारत ने नीदरलैंड के शहर हेग स्थित आई.सी.जे. (इंटरनेशनल कोर्ट आंफ जस्टिस) में अपील दायर कर दी जिसने कुलभूषण की फांसी पर तात्कालित रोक लगाते हुए पाकिस्तान को आदेश दिया कि वह फांसी को स्थगित करके दिनांक 17 मई 2017 को हेग में पन्दह जजों की एक बेंच के सामने होने वाली सुनवाई में शामिल हो। पाकिस्तान अपने स्तर से ना नुकुर तो करता रहा लेकिन वैश्विक जनमत को देखते हुए वह आई.सी.जे. के अदालत में पेश तो हुआ लेकिन भारत और पाकिस्तान के वकीलों की बहस सुनकर मुख्य न्यायाधीश ने कुलभूषण जाधव की फांसी को अदालत के अंतिम आदेश तक रोक देने का निदेश दिया है। पाकिस्तान ने तिलमिलाकर आई.सी.जे. से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की याचिका दायर कर दी है।

पिछले सात दशको से यदि पाकिस्तान की दुष्टतापूर्ण हरकतों का एक चिट्ठा तैयार किया जाए तो वह एक बड़ी पुस्तक बन जाएगी लेकिन पाकिस्तान है कि मानता ही नहीं। समझौते होने के बावजूद पाकिस्तान एल..सी. का अक्सर उल्लंघन करता रहता है तथा बीच-बीच में घात लगाकर भारत के सैनिको की न केवल हत्या कर देता है अपितु यदाकदा उनके शवों को क्षत-विक्षत भी कर देता है। भारत ने कई बार पाकिस्तान के साथ समझौते किए लेकिन वह रास्ते पर नहीं आया। वर्ष 1971 के जंग में पाक को भारत के हाथों शर्मनाक हार मिली थी जिसमें पाकिस्तान के 90 हजार सैनिको ने पश्चिम पाकिस्तान (आज का बंगला देश) में भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। भारत यदि पाकिस्तान की तर्ज पर दुष्टता करता तो उन 90 हजार सैनिको की जिन्दगी खतरे में पड़ सकती थी लेकिन तत्कालीन पधानमंत्री स्व0 इन्दिरा गांधी एवं पाकिस्तान के पधानमंत्री मरहूम जुल्फीकार अली भुट्टो के बीच षिमला समझौता हुआ और भारत ने 90 हजार पाक सैनिको को बाइज्जत रिहा कर दिया। पाकिस्तान के डी0एन00 में यदि बेर वाले अवगुण नहीं होते तो वह भारत का पागुजार रहता लेकिन जैसे ही पाकिस्तान को मौका मिला उसने कुछ न कुछ बुरी करतूत कर ही डाली। भारत के तत्कालीन पधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जब सद्भावना के साथ समझौता-बस लेकर अमृतसर से लाहौर पहुंचे तो उसके कुछ दिनों के बाद ही पाकिस्तान ने कश्मीर के कारगिल में घुसपै"ियो के रूप में अपने नियमित सैनिको को घुसाकर भारत पर परोक्ष हमला कर दिया। पाकिस्तान के इस षड्यंत्र को नाकाम करने के लिए भारत को अपने दो हजार से अधिक सैनिको की कुर्बानी देनी पड़ी। हकीकत में पाकिस्तान की करतूतें इतनी ज्यादा हैं कि उसे गिना नहीं जा सकता। लगता यही है कि आगे भी पाकिस्तान भारत को चैन से नहीं बै"ने देगा। संत कबीर ने केले और बेर की निकटता के दुष्परिणाम तो बता दिये हैं लेकिन उस दुष्ट से पीछा छुड़ाने का कोई सूत्र नहीं बताया। इस आलोक में भारत को चाणक्य के निम्नांकित एक सूत्र से पेरणा लेनी चाहिए जिसमें उन्होंने बताया है कि,

कंटकस्य च भग्नस्य

दन्तस्य चलितस्य च।

सुहृदश्चापि दुष्टस्य

मूलादुद्धरणं वरम्।।

अर्थात् मुंह में हिलते हुए दांत, पैर में गड़ा टूटा हुआ कांटा एवं दुष्ट पड़ोसी से निजात पाने के लिए उपरोक्त तीनों वस्तुओं का समूल उच्छेदन कर देना चाहिए। चाणक्य की इस सूक्ती पर चलकर भारत को पाकिस्तान से निपटने का कोई रास्ता तो खोजना ही होगा।

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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