Home » द्रष्टीकोण » संदेश ले. उमर फैयाज की शहादत के?

संदेश ले. उमर फैयाज की शहादत के?

👤 admin5 | Updated on:21 May 2017 3:44 PM GMT
Share Post

तनवीर जाफरी

वैसे तो भारत का जम्मू-कश्मीर राज्य पाकिस्तानी शासकों तथा जम्मू-कश्मीर में स्थित कुछ अलगाववादियों के संयुक्त नेटवर्प के चलते गत चार दशकों से अस्तव्यस्त है। परंतु गत चार वर्षों में विशेषकर कश्मीर घाटी के हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं। आम कश्मीरी क्षेत्र के इन हालात से दुखी हो चुके हैं। क्षेत्रीय लोग कश्मीर में अमन-शांति चाहते हैं, अपने बच्चों के लिए अच्छी एवं सुचारू शिक्षा की तमन्ना रखते हैं, अपने रोजगार में तरक्की तथा निरंतरता की वाहिश रखते हैं, राज्य में पर्यटन को पुनः पटरी पर लाना चाहते हैं। जाहिर है भारत सरकार तथा राज्य सरकार इन जनहितकारी कार्यों के लिए अनेक योजनाएं चला रही है और भविष्य में भी चलाना चाहती है। इतने अस्तव्यस्त रहने के बावजूद जम्मू-कश्मीर में रेल, सड़क, संचार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काफी तरक्की हुई है। धारा 370 के तहत कश्मीरी अवाम को अनेक ऐसी सुविधों पाप्त हो रही हैं जो कश्मीरियों के विकास तथा उनकी उन्नति व संस्कृति के लिए काफी लाभदायक हैं। परंतु इन सब बातों के बावजूद गत कुछ वर्षों में ऐसा पतीत होने लगा है गोया कश्मीरी नौजवान कश्मीर की आजादी के लिए मर-मिटने के लिए तैयार हों।

उनके हाथो में लहराते पाकिस्तान व आईएआईएस के झंडे यह बता रहे हों कि वे भारत के साथ रहना ही न चाहते हों। भारतीय सेना पर कश्मीरी युवाओं व युवतियों द्वारा आए दिन की जाने वाली पत्थरबाजी तथा उनके अपने ही समाज के भारतीय सेना के युवा होनहार अधिकारी लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की गत 10 मई को कश्मीर के शोपियां में आतंकियों द्वारा की गई हत्या तो कम से कम कुछ ऐसे ही संदेश दे रही है।

तो क्या वास्तव में समग्र कश्मीर घाटी भारत व भारतीय सेना के विरुद्ध हो चुकी है या कश्मीर जैसा विवाद जो कल तक स्थानीय कश्मीरी अलगाववादियों व भारत सरकार के बीच का एक राजनैतिक मसला समझा जाता था वह अब धार्मिक विषय बन चुका है?

जब भी कश्मीर विवाद का नाम आता है उस समय अलगाववाद अथवा कश्मीरियत के स्वयंभू पैरोकारों के रूप में हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे स्थानीय व क्षेत्रीय अलगाववादी संगठन का नाम जेहन में उभरकर सामने आता है। परंतु लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों द्वारा की गई हत्या के बाद आतंकवादियों के एक धड़े की ओर से इन्हीं हुर्रियत नेताओं को साफतौर से यह धमकी दी गई कि-`कश्मीर मसले को राजनैतिक मसला समझने की कोशिश न की जाए बल्कि कश्मीर की जंग उनकी नजरों में इस्लाम के लिए लड़ी जाने वाली जंग है, कश्मीर में वे जेहाद कर रहे हैं और वे यहां शरिया कानून स्थापित करना चाहते हैं।' हालांकि गुपचुप तरीके से कश्मीरी आंदोलन में जेहादी तत्वों की घुसपैठ की चर्चा तो पहले भी होती रही है परंतु पहले ये नौबत कभी नहीं आई थी कि कोई आतंकी कमांडर हुर्रियत नेताओं को कश्मीर मसले को राजनैतिक मसला बताने के लिए इस हद तक खबरदार करे कि वह हुर्रियत नेताओं के सिर काटकर लाल चौक पर लटकाने की धमकी तक दे दे। बहरहाल इस धमकी के बाद तथा लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हत्या व उस हत्या के बाद आए आतंकियों के संदेश के बाद तो यह बात साफ हो चुकी है कि कश्मीर को सीमापार से हो रहे हस्तक्षेप की मदद से कथित जेहाद की आग में झोंकने की तैयारी भी हो चुकी है।

आज भारत सरकार व जम्मू-कश्मीर राज्य के लगभग सभी विभागों में, यहां तक कि पशासनिक व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था, सेना, अर्धसैनिक बलों व राज्य की सुरक्षा सेवाओं में सभी जगह कश्मीरी अवाम अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। कश्मीर में भय व आतंक का माहौल पैदा करने वाले तथा कश्मीरी अवाम को धर्मयुद्ध या जेहाद की आग में झोंकने की कोशिश करने वाले लोग चाहे जितनी कोशिशें क्यों न कर लें परंतु अपने भड़काऊ,उकसाऊ व जज्बाती भाषणों से वे कश्मीरी युवाओं को रोजगार नहीं दे सकते न ही उन्हें तरक्की की राह दिखा सकते हैं।

उनके शरीया कानून कायम करने के सपने कश्मीरी युवाओं का पेट नहीं भर सकते न ही उनके जीवन को किसी बड़े लक्ष्य तक पहुंचा सकते हैं। आज कश्मीर की इज्जत का कारण तथा राज्य के युवाओं के पेरणा स्रोत के रूप में शाह फैसल, अतहर आमिर, मोहम्मद शमी, नबील अहमद वानी तथा उमर फैयाज जैसे युवा हैं न कि पाकिस्तान की शह पर कश्मीर की स्वर्ग रूपी धरती को नर्प बनाने वाले हाथों में एके-47 लेकर चलने वाले आतंकी पवृति के हिंसा फैलाने वाले लोग।

यहां एक बात और भी गौरतलब है कि लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हत्या के बाद उनके जनाजे पर पथराव करवाकर स्थानीय लोगों को डरा-धमकाकर यह संदेश देने की पूरी कोशिश की गई कि कश्मीरी नवयुवक सुरक्षा बलों में नौकरी करने का साहस न जुटा सकें। परंतु ठीक इसके विपरीत उमर फैयाज की हत्या के चार दिन बाद ही श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर की भर्ती हेतु कश्मीरी युवक-युवतियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। 698 पदों के लिए 67218 युवक-युवतियों ने आवेदन किया। खुद भारतीय सेना पमुख जनरल विपिन रावत भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि `सभी कश्मीरी आतंकवाद में शामिल नहीं हैं।' परंतु यह भी सच है कि सभी कश्मीरियों को जेहाद, शरीया तथा धार्मिक उग्रवाद का पाठ पढ़ाए जाने की कोशिश जरूर की जा रही है।

कश्मीर से आने वाले समाचारों के अनुसार घाटी के विभिन्न क्षेत्रों में कश्मीरियत की पहचान बनी धार्मिक सौहार्द्र की पतीक समझी जाने वाली सूफीवादी विचारधारा का गला घोंटने की एक सोची-समझी साजिश रची जा रही है। यहां यह बताने की जरूरत नहीं कि यह वही वहाबी नेटवर्प है जो सऊदी अरब से चलकर तालिबान, अलकायदा, आईएसआईएस होते हुए कश्मीर में अपने पैर पसारना चाहता है। खबरों के मुताबिक इस समय घाटी में अनेक ऐसे मौलवी सकिय हैं जो वहां की अवाम को धर्मयुद्ध, जेहाद, शहादत, गाजी, जन्नत, शरीया जैसे पाठ पढ़ा रहे हैं। ऐसे लोग अपने मिशन पर खूब पैसे भी खर्च कर रहे हैं। घाटी में वहाबियत और सल्फी विचारधारा का जोर-शोर से पचार किया जा रहा है।

जाहिर है यह लोग भी भारतीय सेना के हाथों कश्मीरी युवकों पर की जाने वाली जवाबी कार्रवाई के वीडियो व चित्रों का सहारा लेकर कश्मीरी लोगों में भारत सरकार के विरुद्ध गुस्सा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि आज भी कश्मीर के बहुसंख्य लोग चाहे वे मुसलमान हों, हिंदू हों या सिख, ऐसी 70 पतिशत से अधिक आबादी का रुझान सूफीवादी विचारधारा के पति है।

ऐसे में जहां कश्मीर के मुद्दे को राजनैतिक रूप से हल करने की बड़ी चुनौती भारत सरकार के सामने पहले से ही है वहीं सरकार, सेना तथा राज्य सरकार के सामने एक दूसरी बड़ी चुनौती यह भी आ चुकी है कि कश्मीर घाटी के लोगों को घाटी में फैल रही वहाबी विचारधारा के चंगुल में फंसने से कैसे रोका जाए? इस जहरीली विचारधारा से मुकाबला करने के लिए सूफीवादी विचारधारा के लोगों को किस पकार सुरक्षा, संरक्षण व बढ़ावा दिया जाए?

भारत सरकार, जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार तथा भारतीय सेना को भारतीय सैनिकों की कश्मीर में हुई शहादत तथा लेफ्टिनेंट उमर फैयाज जैसे देशभक्त कश्मीरी युवक की शहादत का सम्मान करते हुए कश्मीर व कश्मीरियत की रक्षा की खातिर कश्मीर विरोधी सभी मंसूबों को विफल करने के पूरे पयास करने चाहिए।

Share it
Top