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स्वच्छता और स्थानीय पशासन

👤 admin5 | Updated on:22 May 2017 5:02 PM GMT
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रविकांत त्रिपाठी

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही स्वच्छता को आंदोलन की तरह लिया और इस संदर्भ में देश को हर समय जागरूक करने की कोशिश भी की तथा इसी क्रम में शहरी एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कुछ नियम और योजनाओं को भी पस्तुत किया परिणाम स्वरूप शहरी विकास मंत्रालय की ओर से स्वच्छ शहरों की एक सूची भी जारी की गई किंतु परिणाम निराशाजनक रहे। उत्तर भारत के अनेक मशहूर शहर स्वच्छता के पैमाने पर फिसड्डी पाए गए। हालांकि ये सामान्य बात नहीं हो सकती फिर भी इस स्वच्छता अभियान को बेहद सामान्य तरीके से ही लिया गया। ये सामान्य-सी बात है कि स्वच्छता के पैमाने पर जो भी सूची बनेगी उसमें शहरों का निश्चित क्रम दिखेगा ही लेकिन उसमें महत्वपूर्ण बात ये होनी चाहिए कि इस सूची में स्वच्छता के मानदंड क्या है?

मोदी सरकार ने स्वच्छता को पामाणिक स्तर पर लाने के लिए अभिनव पहल की है किंतु पशासन से लेकर जनता तक इस अभियान के पति इतना उदासीन रवैया पदर्शित करेंगे ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। मुझे याद आता है जब पधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी तो विपक्ष ने इस अभियान की बखिया उधेड़ते हुए कहा था कि पधानमंत्री बताएं कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा? जबकि ये एक जागरुकता अभियान था जो जनता के दायित्वों को बोध कराते हुए उन्हें स्वच्छता के पति जागृत करने का एक अनोखा पयास था जिसे देखकर पशासन और स्थानीय शासन दोनों को सबक लेने की जरूरत थी।

ये देखकर अच्छा लगा यूपी के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी ने इस दायित्वबोध को समझ लिया था और शपथ के बाद जब एक्शन मोड में आने का समय आया तो योगी का पहला एक्शन स्वच्छता पर ही हुआ कभी स्वच्छता की शपथ दिलाते हुये तो कभी झाडू से सफाई करते हुए। देश के आधुनिक इतिहास में स्वच्छता के सबसे बड़े पैरोकार महात्मा गांधी रहे हैं। हरिजन बस्तियों में जाकर स्वच्छता के पा" पढ़ाना और भजन करना गांधी जी का एक निर्धारित कार्य बन चुका था लेकिन उनके मृत्यु के बाद स्वच्छता की बातें हाशिये पर ही रहीं।

महात्मा गांधी सत्ता के विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन को विशेष रूप से महत्व देते थे उनका ये सपना तब पूरा हुआ जब देश ने संविधान में संशोधन करके 73वां और 74वां अनुच्छेद जोड़कर ग्राम और नगर निकाय की अवधारणा को साकार किया। ये कदम लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर था। संविधान के अनुच्छेद 243 में ग्राम और नगर निकाय के बारे में विस्तार से लिखा गया है। इस अवधारणा को साकार करने का मूल भाव यही था कि स्थानीय निकायों को अपनी जरूरतों के हिसाब से निर्णय लेने व विकास करने का अवसर मिल सके।

अब प्रश्न ये उ"ता है कि क्या स्थानीय निकायों ने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम दिया है? क्योंकि स्वच्छ भारत अभियान के तहत जो स्वच्छता और पूड़ा-कचरा पबंधन का विषय है दरअसल ये पाथमिक जिम्मेदारी है स्थानीय निकायों का। अगर स्थानीय पशासन अपनी जिम्मेदारियों को लेकर मुस्तैद होता तो शायद पधानमंत्री को स्वच्छता को लेकर देश से ये अपील नहीं करनी पड़ती या अभियान चलाने की बात नहीं करनी पड़ती। स्थानीय पशासन को निर्देशित करने के लिए संविधान में अनुसूची 11 एवं 12 जोड़ी गई जिसमें स्वच्छता के बारे में स्पष्ट रूप से कहा गया है। लेकिन दुर्भाग्य है कि ग्राम एवं नगरीय निकायों ने स्वच्छता रूपी अपनी जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक नहीं निभाया।

आज शहर और कस्बे पूड़े के ढेर पर स्थापित होते जा रहे हैं, बजबजाती हुई नालियां और जगह जगह पूड़े-कचरे का ढेर शहर व कस्बों की पहचान बनते जा रहे हैं। जिसका परिणाम है हर गांव शहर कस्बे में संक्रामक व मच्छर जनित रोगों का फैलाव, स्वच्छ पीने के पानी का अभाव एवं भूजल का अत्यधिक दूषित होना जिसकी चपेट में देश की करोड़ों की आबादी आ चुकी है। आजादी के सात दशकों के बाद और आधुनिक होते समाज में अगर बुनियादी जिम्मेदारियों को निभाने का दायित्वबोध भी न हो तो ऐसे स्थानीय स्वशासन का मोल नहीं रह जाता। स्वशासन की सार्थकता तभी है जब स्वच्छता के विशेष पयास हों।

केंद्र सरकार शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में परिवर्तित करने के लिए एक पारूप पर काम कर रही है लेकिन यदि स्वच्छता के पति निरुत्साह पदर्शित किया जाएगा तो स्मार्ट सिटी की अवधारणा भी सही आकार नहीं ले पाएगी। स्वच्छ भारत अभियान स्थानीय स्वशासन और जनसुविधाओं से जुड़ा हुआ मामला है और स्मार्ट सिटी की अवधारणा उसी की अगली कड़ी, इसे समझने की जरूरत है।

नगर विकास मंत्रालय ने स्वच्छ शहरों की जो सूची जारी की है उससे अनेक संदेश स्पष्ट हैं जिन्हें गंभीरता से समझने की जरूरत है। ग्राम और नगर निकायों को एक बहुत बड़ा बजट पत्येक वर्ष मिलता है यदि उन पैसों का सही उपयोग नहीं होता है तो दुर्भाग्य की बात है। अगर ये स्थानीय पशासन अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए स्वच्छता पर ध्यान देते तो परिणाम कुछ और होते और अगर ऐसा नहीं है तो आखिर इनके बजट का क्या होता है? इसका तात्पर्य है कि पैसों की बंदरबांट होती है जो पूर्व में राजनेता कहते आए हैं। अगर ये स्थानीय पशासन लूट खसोट के अड्डे बन रहे हैं तो इनके अस्तित्व से देश को लगातार नुकसान उ"ाना पड़ रहा है। स्थानीय पशासन देश में राजनीति के सबसे बड़े अड्डे हैं जहां जिम्मेदारियों पर कम राजनीति पर ज्यादा चर्चा होती है। इन निकायों में राजनीतिक चर्चा या पैंतरेबाजी का होना बुरा नहीं है किंतु जिम्मदारियों को परे हटाकर सिर्प राजनीति हो ये बुरी बात है।

स्वच्छता और स्वास्थ्य का बेहद करीबी रिश्ता है जितनी ज्यादा स्वच्छता उतना ही बेहतर स्वास्थ्य और अगर स्वच्छता में लापरवाही तो बीमारियों को खुला आमंत्रण। यदि स्वशासन के स्थानीय पयास सफल होते तो स्वच्छता को अभियान की तरह लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती। व्यावहारिक तौर पर स्थानीय पशासन निकम्मा ही पतीत होता है। केंद्र सरकार की अनेक योजनाएं हैं जो स्थानीय पशासन के द्वारा ही संपादित कराई जाती हैं जैसे हर गांव तथा शहर को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना, स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध कराना, मनरेगा के तहत गांवों में बुनियादी जरूरतों के काम कराना इत्यादि। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनके सम्पन्न होने में स्थानीय पशासन की महती भूमिका हो सकती है।

आज मनरेगा के अंतर्गत हजारों करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। मनरेगा और स्थानीय पशासन के बीच एक अटूट रिश्ता है आने वाले समय में ये रिश्ता और भी मजबूत हो और मनरेगा को स्वच्छता अभियान से कैसे जोड़ा जाए इस पर गंभीरता से पयास करने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसे समन्वय पर विचार करना चाहिए और अगर बेहतर परिणाम मिलने की थोड़ी भी संभावना नजर आती हो तो इस विषय पर निर्णय लेना चाहिए क्योंकि मनरेगा भी आंशिक या पूर्णतः स्वच्छता से जुड़ा हुआ ही विषय है।

इस देश में स्वच्छता अभियान अभी तक उपहास का पात्र बना हुआ है जबकि केंद्र इस विषय पर निरंतर गंभीर है और मोदी सरकार की मंशा भी यही है कि भारत स्वच्छता के पैमाने पर विश्व के श्रेष्ठ देशों में गिना जाए। लेकिन इसके लिए उत्तरदायित्व पूर्ण पतिबद्धता और निर्देशन की जरूरत है। जिस पकार स्थानीय स्वशासन अपनी संवैधानिक बाध्यताओं के निष्पादन के लिए पतिबद्ध है उसी पकार स्वच्छ भारत अभियान में भी पूरे देश को पतिबद्ध होना ही चाहिए ऐसा लक्ष्य चाहे लोगें को जागरूक करके पाया जाए अथवा कानूनन बाध्य करके।

स्वच्छता, स्वास्थ्य और स्थानीय स्वशासन में चोली दामन का साथ बाध्यकारी हों ऐसे पयास अब अनिवार्य हैं क्योंकि बेहतर स्वास्थ्य और मुस्कुराहट जीवन जीने का पाथमिक आधार है स्वच्छता पर सरकार के क"ाsर पयास अनिवार्य हैं क्योंकि सत्ता की सूरत बदल चुकी है अब देश की सूरत भी बदलनी चाहिए।

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