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अखिलेश ने खुद अपना नाश किया

👤 admin5 | Updated on:23 May 2017 3:39 PM GMT
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श्याम कुमार

कहावत है `विनाशकाले विपरीत बुद्धि', अर्थात जब विनाश का समय आता है तो उस व्यक्ति की बुद्धि उसे ही क्षति पहुंचाने वाला निर्णय कराने लगती है तथा व्यक्ति को भले-बुरे का बोध नहीं रह जाता है। वह जिद्दी स्वभाव का हो जाता है तथा गलत जिद से अपना नुकसान करता है। सद्दाम हुसैन को मनाने के लिए अमेरिका झुकता जा रहा था, लेकिन सद्दाम अपनी जिद पर अड़े रहे, जिसके परिणामस्वरूप नष्ट हो गए।

कल्याण सिंह ने दो-दो बार जिद में आकर अपने मूल चरित्र वाली पार्टी छोड़ी और गलत तत्वों के साथ जाकर अपने भविष्य को क्षति पहुंचाई। अन्यथा उस समय भारतीय जनता पार्टी में कल्याण सिंह का नाम अटल बिहारी वाजपेयी व लाल कृष्ण आडवाणी के बाद तीसरे नम्बर पर था। राजस्थान का राज्यपाल बनने से वह एकांतवास में जाने से बच गए। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जिनमें अहंकार एवं जिद्दी स्वभाव ने व्यक्ति का स्वर्णिम भविष्य नष्ट कर दिया। ताजा उदाहरण अरविंद केजरीवाल एवं अखिलेश यादव हैं।

जब मुलायम सिंह यादव ने पुत्र अखिलेश यादव को राजनीति में उतारा था, उस समय अखिलेश का बड़ा सौम्य चेहरा था तथा स्वभाव अत्यंत शालीन एवं मिलनसार था। मुझे स्मरण है, अनेक अवसरों पर वह स्वयं उ"कर मेरे पास आकर बड़ी विनम्रता से मुझसे मिले थे। मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के मंत्रिमंडल में जब कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री थे तो मुलायम सिंह सहकारिता मंत्री थे। उस समय मैं इलाहाबाद में सम्पादक था और महीने में लगभग दस दिन मेरा लखनऊ में रहना होता था। तब मुलायम सिंह का स्वभाव भी अखिलेश यादव के शुरुआती दिनों की तरह बड़ा शालीन एवं आत्मीयतापूर्ण हुआ करता था। उनसे उस समय मेरी बहुत घनिष्"ता थी तथा लखनऊ में उनके आवास पर खूब बातें होती थीं। मैंने उनके अनेक साक्षात्कार पकाशित किए थे। किन्तु बाद में जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने तो उनका स्वभाव बहुत बदल गया। अखिलेश यादव के साथ भी ऐसा ही हुआ।

मायावती निहायत अक्खड़, अहंकारी एवं बदतमीज मुख्यमंत्री थी। उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर मनोरोग था। इसीलिए उन्होंने अपनी सुरक्षा के चक्कर में जनता की मुसीबत कर रखी थी। जिस कालिदास मार्ग से लोग बेखटके गुजरा करते थे, उसे पतिबंधित कर दिया गया था। इसीलिए जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने और उन्होंने मायावती के सभी वाहियात पतिबंधों को समाप्त कर दिया तो जनता में अखिलेश यादव की धूम मच गई। डीपी यादव को पार्टी में पवेश देने का विरोध कर वह पहले ही अपनी छवि अच्छी बना चुके थे। इसी से जब वह मुख्यमंत्री बने तो जनता को मलयजी बयार की भांति सुख महसूस हुआ था। हर जगह अखिलेश यादव की तारीफ होती थी और लोगों का मानना था कि अपने पिता तथा चाचाओं शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव व आजम खान की वजह से वह खुलकर अच्छा काम नहीं कर पा रहे हैं। हकीकत यही थी। रामगोपाल यादव का पशासन में बहुत अधिक हस्तक्षेप था तथा तमाम गलत लोग उनसे मनचाहे निर्णय करा लेते थे एवं महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो गए थे।

शिवपाल यादव निकम्मे मंत्री थे, किन्तु लोक निर्माण, सिंचाई आदि अत्यंत महत्वपूर्ण विभागों पर काबिज थे। पदेशभर में लोकनिर्माण विभाग की सड़कों की बहुत बुरी दशा थी, किन्तु कोई सुनने वाला नहीं था। आजम खान के निकम्मेपन एवं भ्रष्ट छवि ने पदेश के नगरों का विनाश कर डाला। जनता त्राहि-त्राहि करती थी, किन्तु कोई ध्यान नहीं देता था। आजम खान की कट्टर मुस्लिमपरस्ती ने हिंदुओं को बहुत नाराज कर दिया। वह जब तक हिंदुओं के विरुद्ध जहर उगला करते थे।

अखिलेश यादव की जो सौम्य एवं साफ-सुथरी छवि थी, वह धीरे-धीरे धूमिल होती गई तथा वह मायावती की भांति भ्रष्ट एवं माफियाओं के घेरे में घिरने लगे। उनके इर्द-गिर्द भ्रष्ट अफसरों, भ्रष्ट नेताओं एवं भ्रष्ट पत्रकारों का तगड़ा घेरा बन गया तथा सही लोगों का उन तक पहुंचना लगभग असंभव हो गया। पंचम तल पर भी गलत तत्वों का बोलबाला होने लगा। तमाम माफिया मुख्यमंत्री की पमुख सचिव अनीता सिंह के नाम पर खूब फायदा उ"ाने लगे। किन्तु अखिलेश यादव के विनाश की चरम स्थिति तब उत्पन्न हुई
, जब वह नवनीत सहगल के चंगुल में फंसे और उसके बाद राहुल गांधी से उन्होंने दोस्ती कर ली। नवनीत सहगल के बारे में लोग कहने लगे कि पहले उन्होंने मायावती को भ्रष्टाचार के दलदल में फंसाकर बर्बाद किया और अब अखिलेश यादव को उस दलदल में फंसाने आ गए हैं। नवनीत सहगल के आने के बाद अखिलेश यादव की महाभ्रष्ट वाली छवि बन गई। मशहूर हो गया कि वह वही योजनों स्वीकृत करते हैं
, जिनमें अधिक से अधिक घोटालों की गुंजाइश हो। राहुल गांधी से दोस्ती के बाद तो उनकी स्थिति `कोढ़ में खाज' वाली हो गई। राहुल गांधी की तरह उनकी भाषा भी अत्यंत अभद्र एवं बेहूदी हो गई। राहुल गांधी की तरह ही उनका भी एक सूत्री कार्यक्रम मोदी को गाली देना हो गया। एक पत्रकार वार्ता में अखिलेश यादव ने ऐसा पत्रक पस्तुत किया
, जिसमें उनके दस कामों की चर्चा थी और पत्रक में लिखा था कि मोदी ने पधानमंत्री बनने के बाद अब तक एक भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है। जनता देख रही थी कि मोदी ने पधानमंत्री बनने के बाद देश को नष्ट होने से बचा लिया था। उन्होंने जितने सराहनीय कार्य किए, सब लोगों के सामने थे। लेकिन अखिलेश यादव अपने झू" से दिन को रात सिद्ध करना चाहते थे
, जिसका परिणाम यह हुआ कि जनता ने उन्हें शिखर से शून्य पर पहुंचा दिया। अखिलेश यादव जब अपने पिता को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर स्वयं राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए तो जनता ने इसे औरंगजेब की भांति घृणित कृत्य करार दिया। औरंगजेब ने भी गद्दी हासिल करने के लिए अपने पिता को जेल में डाल दिया था।

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