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कोरोना के बाद हालात : आमदनी अठन्नी और खर्च पांच रुपए

👤 Veer Arjun | Updated on:22 Jun 2020 6:33 AM GMT

कोरोना के बाद हालात : आमदनी अठन्नी और खर्च पांच रुपए

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-आदित्य नरेन्द्र

विश्वव्यापी आर्थिक सुस्ती के बाद कोरोना का कहर लगभग ऐसा ही है जैसे 'एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।' इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि देश में आर्थिक हालात बेहद खराब होने की दिशा में चल पड़े हैं। अर्थव्यवस्था चरमरा गईं है। आम आदमी के हाथ में ज्यादा पैसा नहीं है। लोगों के हाथ में पैसा न होने से व्यापारी परेशान हैं और जब व्यापार ही ठीक ढंग से नहीं चल पा रहा हो तो सरकार टैक्स की उम्मीद कहां से करेगी। परिणामस्वरूप ऐसे में खजाना खाली होते देर नहीं लगती।

इन्हीं स्थितियों के चलते उम्मीद जताईं जा रही है कि कोरोना के बाद हालात बेहद विकट होने वाले हैं। संक्षेप में कहा जाए तो सरकार और नागरिकों दोनों की आर्थिक स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्च पांच रुपए होने वाली है। इस बीच प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का मंत्र दिया है लेकिन सच्चाईं यह है कि आत्मनिर्भरता का लक्ष्य साल-दो साल में प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक काफी लंबा और कठिन रास्ता तय करना होगा। इससे पहले उसे आर्थिक संकटों का सामना कर रहे आम लोगों को राहत पहुंचाने के लिए सभी संभव उपाय करने होंगे।

बेशक सरकार ने वुछ राहत पैकेज घोषित किए हैं फिर भी अनेक क्षेत्र एवं वर्ग ऐसे हैं जो अभी भी सरकार से राहत का इंतजार कर रहे हैं। बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी जाने का खतरा सामने है। ऐसे में वह लोग अपना परिवार वैसे चला पाएंगे यह बड़ा सवाल है। हमें अब कोरोना के बाद 'भरोना' की स्थिति से मुकाबला करना होगा। पैसे-पैसे को तरसते आम लोगों को बच्चों के स्वूल की फीस, बिजली, टेलीफोन, इंटरनेट के खच्रे वैसे भरे जाएं इससे जूझना होगा। जब बड़ी संख्या में नागरिक बिजली, टेलीफोन के बिल नहीं भर पाएंगे तो सरकार कितने लोगों के कनेक्शन काटेगी। कईं लोगों को नौकरी जाने के वजह से मकान मालिको ने घर से निकाल दिया। जो लोग मकान की किस्तें नहीं दे पाएंगे उनके मकान जब्त हो जाएंगे और जो किस्तें भर रहे हैं भविष्य में नौकरी जाने की वजह से यदि वह किस्तें नहीं भर पाएंगे तो उनके मकानों का क्या होगा।

पिछले वुछ दिनों से पेट्रोल-डीजल के दामों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसका असर आम आदमी से लेकर लोगों के बिजनेस तक पर पड़ रहा है। सरकार ने कोरोना टेस्टिंग व इलाज के लिए रेट घटाए हैं फिर भी यह आम आदमी की पहुंच से बाहर है। आरबीआईं की गाइडलाइंस के तहत यदि किसी की एकाध किस्त मिस हो जाए तो रिक्वरी टीम तुरन्त वहां पहुंचकर र्दुव्‍यंवहार करने लगती है। सरकार को ईंमानदार व अन्य लोगों में फर्व करना होगा। व््रोडिट कार्ड के द्वारा 50 फीसदी तक वसूला जाने वाला ब्याज 10 फीसदी किया जाना चाहिए। आर्थिक सुस्ती और कोरोना की मार पेंशन से गुजारा करने वाले बुजुर्गो पर भी पड़ी है। तीन-चार साल पहले बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट की जो दर आठ-पौने आठ फीसदी थी वह अब घटकर साढ़े पांच फीसदी पर आ गईं है जिससे उन लोगों की मुश्किलें बढ़ गईं हैं जो पेंशन पर जीवनयापन कर रहे हैं। लगभग सभी सेक्टर आर्थिक परेशानियां झेल रहे हैं लेकिन टूरिज्म जैसे विदेशी मुद्रा कमाऊ सेक्टर का हाल तो सबसे ज्यादा बुरा है। अनुमान है कि एक पर्यंटक आठ लोगों को रोजगार देता है।

इनमें एयरलाइन, होटल, रेस्टोरेंट, टैक्सी ड्राइवर, गाइड, स्थानीय सामान बेचने वाले आदि शामिल हैं। देसी-विदेशी दोनों तरह के पर्यंटकों के लिए अभी ऐसे हालात नहीं हैं कि वह कहीं घूमने जाने की सोचें। इसका असर एक बहुत बड़े तबके पर पड़ा है। न्यूजपेपर इंडस्ट्री भी इसी तरह आर्थिक सुस्ती और कोरोना की मार से प्रभावित एक अन्य उदृाोग है जिसमें विज्ञापनों की कमी के चलते कईं अखबार बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने वेतन न देने वाले मालिकों के खिलाफ कोईं कार्रवाईं न करने की बात कहकर स्थिति में नया मोड़ ला दिया है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में आरबीआईं और वित्त मंत्रालय से पूछा है कि क्या बैंक मोरिटोरियम पर ब्याज वसूल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर आरबीआईं और वित्त मंत्रालय को विचार करने के लिए और अधिक समय देते हुए अगस्त के पहले सप्ताह तक के लिए सुनवाईं टाल दी। वित्त मंत्रालय के आगे बहुत बड़ी चुनौती है। उसे वुशलतापूर्वक इस स्थिति का सामना करना होगा। वुल मिलाकर अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि पहले जहां लोगों के खच्रे बीमारियों के दौरान भी चलते रहते थे क्योंकि उनकी आमदनी चलती रहती थी वहीं अब बड़ी संख्या में लोगों के खच्रे तो बदस्तूर जारी हैं लेकिन उनकी आमदनी या तो रुक गईं है या खत्म हो गईं है। क्या हम इतने अहंकार में हैं कि यह स्वीकार्यं नहीं करेंगे कि अब आर्थिक स्थिति बदल गईं है। सरकार को सामने आकर ऐसे सभी लोगों की मदद करनी होगी। अभी एक से दो साल तक स्थिति में ज्यादा सुधार की कोईं संभावना दिखाईं नहीं देती। कोरोना जिस तरह की बीमारी है उसमें सरकार को 'आउट ऑफ द बॉक्स'

जाकर सोचना होगा। हमारी सरकार से गुजारिश है कि सरकार इस समस्या को रहम की नजर से देखे। सरकार को सामने आकर ऐसे सभी लोगों की मदद करनी होगी। अभी एक से दो साल तक स्थिति में ज्यादा सुधार की कोईं संभावना दिखाईं नहीं देती। कोरोना जिस तरह की बीमारी है उसमें सरकार को 'आउट ऑफ द बॉक्स' जाकर सोचना होगा। हमारी सरकार से गुजारिश है कि सरकार इस समस्या को रहम की नजर से देखे।

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