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चीन को लेकर बकवास कर रहे हैं जयराम

👤 | Updated on:24 May 2010 3:49 PM GMT
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हालांकि वन एवं पर्यावरण मंत्रााr जयराम रमेश पधनमंत्रााr की पफटकार भरी नसीहत के बाद पेस वार्ताओं में आने के पहले ही कहने लगे हैं कि मैं चीन के बारे में कुछ नहीं कहूंगा और चीनी मसले पर किसी भी सवाल का जवाब नहीं दूंगा। लेकिन बड़बोले मंत्रााr ने हाल के महीनों में अपने कैबिनेट सहयोगियों से लेकर बीजिंग तक में जिस तरह की मनमानी टिप्पणियां की हैं, उनसे यूं ही एकतरपफा पिंड नहीं छूटने वाला। दरअसल जयराम रमेश ने वह काम किया है जिसके लिए मापफी बहुत छोटी चीज है और पफटकार न के बराबर दंड। पहले तो इस बात को दोहरा लें कि जयराम रमेश ने आखिर चीन में कहा क्या? मेलॉन कार्नेगी जैसे विश्वपसि( संस्थान के पोडक्ट और पूर्व आईआईटीयन जयराम रमेश राजीव गांध के चहेतों में रहे हैं, इस कारण वह न सिपर्फ राजीव गांध और विश्वस्त सैम पित्रााsदा के साथ काम कर चुके हैं बल्कि कई राज्यों की योजनाओं के लिए सरकारों के लिए महत्वपूर्ण सलाहकार का भी काम किया है। चूंकि 10 जनपथ के जयराम रमेश पिय हैं, इस वजह से जाहिर है मनमोहन सिंह की सरकार में भी उनके लिए महत्वपूर्ण जगह होनी ही थी। वैसे यह भी जान लें कि जयराम रमेश को आध्gनिक भूमंडलीकरण और खुली अर्थव्यवस्था का सम्मानित विशेषज्ञ समझा जाता है। अपनी इसी खूबी के चलते वह एक जमाने में कांग्रेस का विरोध् करके बनी सरकार के पधनमंत्रााr विश्वनाथ पताप सिंह के भी सलाहाकार रह चुके हैं। सीनियर कैबिनेट मंत्रायों में गिने जाने वाले जयराम रमेश पिछले दिनों जब चीन के सरकारी दौरे पर गए तो वहां उन्होंने कुछ ऐसी टिप्पणियां की जिनकी उम्मीद लोग दुश्मनों से भी नहीं करते। जयराम रमेश ने चीन में कहा कि भारतीय गश्ह मंत्राालय चीनी कंपनियों को लेकर कुछ ज्यादा ही चैंकन्ना रहता है जिस कारण चीनी कंपनियों को भारत में कारोबार करते समय भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। गौरतलब है कि कभी कभार मगर दबी जुबान से एकाध् चीनी कंपनी तो ऐसा कहती रही हैऋ लेकिन बहुसंख्यक चीनी कंपनियों ने भी कभी भारत पर कारोबारी सहुलियतों के संबंध् में किसी तरह के भेदभाव का आरोप नहीं लगाया। जयराम रमेश जिस संचार कंपनी हुवाई के पति सहानुभूति दर्शाने के लिए गश्ह मंत्राालय के बहाने भारत की आलोचना कर रहे थे। यह वही कंपनी है जिसके कारोबार और रव्वैये को लेकर अमरीका, इंग्लैंड जैसे देशों ने भी शक जाहिर किया है। ज्ञात हो कि गश्ह मंत्राालय ने हुवाई कंपनी के कुछ संचार उपकरणों को इस बिना पर खरीदने से कदम पीछे खींच लियाऋ क्योंकि खुपिफया एजेंसियों का यह आंकलन है कि यह कंपनी चीनी सरकार के लिए खुपिफया सूचना एकत्रा करने का भी काम करती है। गश्ह मंत्राालय को इस संबंध् में यह सावधनी बरतनी इसलिए भी जरूरी था क्योंकि कंपनी द्वारा खरीदे जाने वाले उपकरणों को सीमावर्ती क्षेत्रााsं में इस्तेमाल किया जाना था। अब ऐसे संवेदनशील मामले में भारत सरकार किसी तरह का रिस्क भला कैसे ले सकती थी। लेकिन जयराम रमेश को तो लगता है कि वास्तव में चीनी कंपनी को इसलिए इस कारोबार से वंचित किया गयाऋ क्योंकि भारत सरकार या भारत सरकार के कुछ मंत्राालय चीन को लेकर कुछ अतिरिक्त सतर्कता ही बरतते हैं। हालांकि गश्ह मंत्राालय ने 24 घंटे के भीतर ही जयराम रमेश के बड़बोलेपन को बेनकाब कर दिया है। "ाsस आंकड़ों को पस्तुत करके जिन्हें देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि रमेश कितना झू" बोल रहे हैं। 2008-09 के वित्तीय वर्ष में भारत और चीन के बीच 38 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। यह कारोबार 24 अरब डॉलर के साथ चीन के पक्ष में है। चीन भारत का अमरीका के बाद सबसे बड़ा एकल कारोबार का साझेदार देश है। चीन से ज्यादा भारत का कारोबार सिपर्फ अमरीका और यूरोपीयन इकोनॉमिक कम्यूनिटी या यूरोपी यूनियन के साथ ही है। क्या इन आंकड़ों को जानने के बाद भी जयराम रमेश, गश्ह मंत्राालय और भारत पर इस तरह का आरोप लगाने की हरकत करेंगे। अगर मौजूदा कारोबार और फ्रयूचर ट्रेडिंग को जोड़ लें तो सन 2010-11 वित्तीय वर्ष में भारत और चीन के बीच कारोबार 60 अरब डॉलर के करीब पहुंचता दिख रहा है और पारंभिक अनुमानों के हिसाब से लगभग 42 अरब डॉलर के साथ यह चीन के पफेवर में होगा। क्या भारत चीन के साथ, चीनी कंपनियों के साथ भेदभाव करता तो दोनों देशें के बीच इतने बड़े पैमाने का कारोबार संभव था? अगर आप अर्थशास्त्रााr हैं तो इस बात को समझना और भी आसान है कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार का पलड़ा किस तरह चीन की तरपफ झुका है। भारत चीन को जो चीजें निर्यात करता है उसमें 53 पफीसदी लौह अयस्क है जो उत्पाद की बजाय संसाध्न है। जिसका तकनीकी अर्थ यह है कि चीन को बहुत पफायदा होगा। दरअसल उत्पाद बाजार की दर से बेचे और खरीदे जाते हैं, इसलिए वह महंगे होते हैं। जबकि पाकृतिक संपदा मसलन खनन पदार्थ मूलभूत संसाध्न होते हैं, इसलिए उनकी कीमत कम होती है और उनको खरीदने वाले के पास उनसे विभिन्न उत्पादों को तैयार करके बाजार के दर पर मुनापफा कमाने की भरपूर गुंजाइशें होती हैं। दूसरी तरपफ चीन से भारत जो चीजें आयात करता है, उसमें इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और मशीनरी पोडक्ट होते हैं जो अच्छे खासे महंगे होते हैं। अगर चीन के साथ भारत भेदभाव करता तो सन 2008 के मुकाबले 2009 में 30 पफीसदी ज्यादा चीनियों को कारोबारी वीजा क्यों देता? 2009 में भारत ने 4.2 लाख चीनियों को बिजनेस वीजा दिया। हां, यह सही है कि हमारे इतना सब करने के बावजूद चीनियों की हमसे उम्मीदें कहीं और ज्यादा हैं और यह अकेले चीन पर लागू नहीं होता। कोई देश नहीं कहता कि उसका कारोबारी समकक्ष उसे भरपूर तरजीह दे रहा है। सबको यही लगता है कि हमें और ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। इसलिए अगर चीनियों को यह लगता है कि भारत उनके लिए अपनी कारोबारी वीजा नीति को और उदार कर दे तो उनके लिए यह लगना स्वाभाविक है। मगर किसी भारतीय मंत्रााr को तो ऐसा नहीं कहना चाहिए कि सरकार के कुछ मंत्राालय चीनियों के साथ भेदभाव करते हैं। अव्वल तो ऐसा भेदभाव होता ही नहींऋ लेकिन अगर वाकई ऐसा भेदभाव मौजूद होता तो भी ऐसा कहना एक कैबिनेट मंत्रााr का अनुचित ही होता। जयराम रमेश अपनी ही सरकार के कुछ मंत्राालयों पर चीन के साथ भले भेदभाव करने का आरोप लगा रहे होंऋ लेकिन हकीकत यह है कि उल्टे चीन भारत के विरु( आक्रामक और दबंग पड़ोसी का रव्वैया अपनाए है जिसके तहत वह कभी हमारी सरहद के भीतर बासी खाने के पैकेट गिरा जाता है तो कभी बयांग पहाड़ी पर लाल पेंट से चीनी सैनिक चीन लिख जाते हैं। जयराम रमेश को चीन जाकर चीन की इन बेजा हरकतों के बारे में बोलना चाहिए था। लेकिन वह चीन पर कोई अंगुली उ"ाने की बजाय अपने देश पर ही और कुछ मंत्राालयों पर अंगुली उ"ा रहे हैं जो सरासर बकवास है। वीर अर्जुन  

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