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पूर्व गृहमंत्री शाह को फंसाने की नई चाल

👤 | Updated on:13 Aug 2010 1:07 AM GMT
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जिस एनकाउंटर एक्सपर्ट अमीन ने सोहराबुद्दीन को गोलियों से भूना उसी को सरकारी गवाह बनाकर सीबीआई शाह को फंसाने की नई चाल चल रही है और उसके एवज में अमीन को जान बख्शी व लाखों रुपये देना निश्चित किया गया है। इस्लाम की दुहाई देकर सोहराबुद्दीन के परिवार द्वारा अमीन पर दबाव बढ़ाने में सीबीआई जी-जान से जुटी हुई है। आशा है कि यदि अमीन वादा माफ गवाह बन जाता है तो अपने मनगढ़ंत बयानों से अमित शाह के जीवन को खतरे में डाला जा सकता है। यह तो सर्वविदित है कि सोहराबुद्दीन की कार्यपद्धति एक डान की तरह थी और अपनी रक्षा के लिए अपने पास बिना लाइसेंस के कई घातक हथियार रखे हुए था जो एनकाउंटर के बाद उसके यहां पाए गए थे और जबरन वसूली उसका पेशा था जिससे वहां का व्यापारी दहशत में था और उससे निजात पाना चाहता था तथा शासन द्वारा उस पर कार्रवाई करवाना चाहता था। सोहराबुद्दीन अपना सांसद होने का लाभ उठा रहा था और शासन को कुछ नहीं समझता था अगर कोई सुपारी देकर व्यापारियों द्वारा खून चूसने  वाले का अंत कराया गया तो इसमें मोदी सरकार की क्या भूमिका थी। यह केवल यूपीए सरकार द्वारा हिन्दुत्व पर अंकुश लगाने और अल्पसंख्यकों का अपना वोट बैंक पक्का करने की नीति का एक अंश है। इस कांड में 13 अभियुक्त हैं और धीरे-धीरे सब अल्पसंख्यक अभियुक्तों को वादा माफ गवाह बना केंद्र सरकार मोदी सरकार को घेरने का मन बना चुकी है। यदि इस एनकाउंटर का फर्जी मान गुजरात सरकार के गृहमंत्री पर उंगली उठाई गई है तो बाटला एनकाउंटर भी अलपसंख्यकों द्वारा फर्जी माना गया है और जो लोग एनकाउंटर में मरे हैं और उन्हें मासूम बताया गया है तो क्यों नहीं वे लोग भारत सरकार के गृहमंत्री को भी कटघरे में खड़ा करते? पर उन्हें कैसे एनकाउंटर का जिम्मेदार माना जाए वह तो मुसलमानों के सरपरस्त हैं। सोहराबुद्दीन प्रकरण ने हिन्दुत्व की लहर चलाने को मजबूर कर दिया है और यदि शाह पर लगाए गए अभियोग में झूठ को सच में बदलने का प्रयास किया गया तो गुजरात तथा समस्त भारत की बीजेपी में आक्रोश बढ़ जाएगा तथा सुस्त हिन्दुत्व का ज्वालामुखी पुन दहक सकता है। सच तो यह है कि पूर्व गृहमंत्री अमित शाह की गिरफ्तारी से बहुसंख्यक समुदाय की नब्ज पर हाथ रखा गया है। यदि इसके पश्चात नरेन्द्र मोदी से कोई प्रश्न कर उसे भी इस घेरे में लाने की कोशिश की गई तो वह कोशिश आग में घी का काम करेगी और इसका नजला अल्पसंख्यकों पर ही पड़ेगा। इससे श्रेष्ठ यही है कि कोई भी किसी को दोष देने से पहले यूपीए सरकार इस पर भली प्रकार सोच विचार कर ले, क्योंकि केंद्र सरकार की गलत नीतियां ही अल्पसंख्यकों को ले डूबी हैं। 60 वर्ष से अधिक समय हो गया है आर्थिक व शैक्षिकता में आज तक उनकी प्रगति नहीं हो सकी 26 वर्ष से अधिक समय भोपाल गैस कांड को हो गए हैं और न तो कोई मुआवजे का समाधान हुआ और न ही विकलांगों के प्रति कोई नीति अपनाई गई। भोपाल गैस कांड में मरने वाले अधिकतर मुसलमान ही थे, जिनकी संतानें न्याय पाने के लिए दर-दर भटक रही हैं। -ब्रह्मदत्त बक्शी,नई दिल्ली।  

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