नहीं दे सकते गरीबों को मुफ्त में अनाज
नहीं दे सकती सरकार गरीबों को मुफ्त में अनाज। दे भी कैसे दे? सरकार गेहूं को 15 रुपये किलो की दर से खरीदती है और गरीबों को दो रुपये की दर से बेचती है। अब बताइए दो रुपये में और मुफ्त देने में फर्प कितना है। हमारे कृषि मंत्री श्री शरद पवार का यह बयान आया है कि माननीय उच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद जिसमें माननीय न्यायालय ने सरकार को यह कहा था कि अनाज सड़ाने से अच्छा है कि उसे गरीबों में मुफ्त में बांट दिया जाए। लेकिन हमारे मंत्री जी इससे सहमत नहीं। वह लाखों टन अनाज को सड़ाकर बर्बाद तो कर सकते हैं परन्तु उन्हें गरीबों में बांटना गवारा नहीं। क्या ही अच्छा हो यदि इसे माननीय न्यायालय अवमानना मानकर उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करे तथा उन्हें छठी का दूध याद आएगा और अपनी औकात का भी पता चलेगा। हो भी क्यों? उनके घर में किस चीज की कमी है या यूं कहें कि उन्हें खरीदना ही क्या पड़ता है। सब कुछ तो उनके यहां परमात्मा की मेहरबानी से आ ही जाता होगा। यह तो जरा गरीब जनता से पूछिए कि वह किस हाल में जी रही है, मंत्री जी। टीवी चैनलों के सर्वे के अनुसार जितना अनाज आपने गोदामों में सड़ा दिया है वह इस देश की जनता की एक माह की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त था और आपने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि टीवी तो इसे बढ़ाचढ़ाकर पेश कर रहा है। शुक्र कीजिए आप भारत में हैं। यदि किसी ऐसे देश में होते जहां इसे भयंकर अपराध माना जाता तो सच मानिए आपको अभी तक वहां की सरकार के द्वारा यहां से विदा कर दिया गया होता। वैसे तो सरकार को चाहिए कि जितने रुपयों का गेहूं बर्बाद हुआ है वह इन मंत्री जी से तथा उस गेहूं को रखने के लिए जिम्मेदार एफसीआई के उच्चाधिकारियों से वसूला जाना चाहिए। -इन्द्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैम्प, दिल्ली।