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जलता कश्मीर, बंसी बजाता नीरो

👤 | Updated on:26 April 2016 12:25 AM GMT
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 कश्मीर जल रहा है और नीरो बंसी बजा रहा है। कुछ ऐसा ही है घाटी का वातावरण पिछले कुछ समय से और वह प्रतिदिन अत्यधिक खतरनाक बनता जा रहा है। एक झूठ का सहारा लेकर कश्मीर में जो भयावह वातावरण तैयार किया गया वह दुखद है। सेना के जवान ने एक लड़की को छेड़ा है। इस बात का दुप्रचार इस कदर किया गया कि लोग सड़कों पर निकल आए। यह भी निर्विवाद है कि सड़कों पर उतरने वाले सारे के सारे लोग अलगाववादियों से हमदर्दी रखने वाले ही है क्योंकि आम कश्मीरी तो सारी बातों को समझता है कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है? इस आंदोलन की आड़ में काफी हिंसक घटनाएं भी हुईं। वहां की सीएम की हालत भी देखने योग्य है। बिना सोचे-समझे केंद्रीय रक्षामंत्री श्री पर्रिकर से भेंट कर उन्होंने इस मामले की जांच का आश्वासन भी ले लिया। उधर जिस लड़की के साथ सेना के व]िथत जवान द्वारा छेड़खानी की बात कही गई है उसने सरेआम इस बात से साफ इंकार कर दिया कि उसके साथ किसी जवान ने कोई हरकत की है। उसने साफ कहा है कि हरकत करने वाला तो लोकल व्यक्ति है। अब क्या करेंगे यह अलगाववादी? अफसोस इस बात का है कि कश्मीर में कुछ समय से किसी न किसी बात को लेकर आग लगाने के प्रयास जारी हैं। एनआईटी के गैर कश्मीरी छात्रों द्वारा वेस्टइंडीज के हाथों हारने का कश्मीरी छात्रों द्वारा जश्न मनाए जाने का विरोध करना और फिर वहां भारत विरोधी नारे लगाना और गैर कश्मीरी छात्रों द्वारा उनका फिर विरोध करना और इसी कारण उन गैर कश्मीरी छात्रों पर बर्बरता से वहीं की पुलिस द्वारा लाठी से हमला करना क्या दर्शाता है? यही न कि वहां तो अलगाववादियों की ही चल रही है। जब वहां लोग आईएस और पाकिस्तान के झंडे लहराते हैं तब इसी पुलिस को सांप क्यों सूंघ जाता है? तब उनकी लाठियां कहां चली जाती हैं? इन छात्रों से तो तिरंगा भी छीन लिया जाता है पर तब कुछ नहीं किया जाता। क्यों? छात्रों की यह मांग की उन आईटी को वहां से शिफ्ट किया जाए गलत नहीं है। इसे शिफ्ट किया ही जाना चाहिए। अफसोस की बात तो यह है कि वहां भी केंद्र में सत्तासीन भाजपा की सहायता से ही पीडीपी की सरकार चल रही है फिर क्यों कश्मीर जल रहा है? क्यों वहां सख्ती नहीं की जाती? जो काम पुलिस को करना चाहिए वह काम भी सेना नहीं की जाती? जो काम पुलिस को करना चाहिए वह काम भी सेना को करना पड़ रहा है। ल]िकन यह भी एकदम साफ है कि यदि पुलिस के भरोसे रह गया तो कश्मीर एक हफ्ते में भारत के हाथ से निकल जाएगा। वहां सेना को भेजना हमारी मजबूरी है। लेकिन यह भी सच है कि आखिर कब तक हम वहां सेना की सहायता से काम चलाएंगे? अब इस सारे मामले की सीबीआई से गहरी छानबीन होनी चाहिए और दोषियों को पकड़ा  जाना चाहिए। इतना ही नहीं, अब वहां आईएस और पाकिस्तान के झंडे को लहराने की घटनाओं पर भी सख्ती करनी होगी वरना तो हालात इस कदर बिगड़ेंगे कि संभालना भी दुष्वार हो जाएगा। -इन्द्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैम्प, दिल्ली। ऑड-इवन फॉमूले की जरूरत ही नहीं अगर दिल्ली में डीटीसी की बसों में बैठने की जगह (सीट) मिल जाए, हर समय दिन-रात और ऑटोरिक्शा सर्विस 24 घंटे उचित दाम पर मिल जाए, लोगों को अपनी निजी गाड़ियां, कारें निकालेंगे ही नहीं। दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार अगर डीटीसी को सुचारू ढंग और क्षमता बढ़ाकर चलाए। ऑटोरिक्शा वालों की आनाकानी पर विराम लगाए। ऑड-इवन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। हर बात के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा पर आरोप न लगाएं। आपकी छवि धूमिल होगी। ये पब्लिक है सब जानती है। -बीएल सचदेवा, 263, आईएनए मार्पिट, नई दिल्ली। मैं प्रसन्न हूं कि मरने के बाद भी काम आ सपूंगा! बुद्ध समय की महत्ता को बेहद अच्छी तरह से जानते थे। वह अपना हर क्षण कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देते थे। एक बार उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला, तथागत आप हर बार विमुक्ति की बात करते हैं। आखिर यह दुःख होता किसे है? और दुःख को कैसे दूर किया जा सकता है? प्रश्नकर्ता का प्रश्न निरर्थक था। तथागत बेतुकी चर्चा में नहीं उलझना चाहते थे। उन्होंने कहा, `अरे भाई! तुम्हें प्रश्न करना ही नहीं आया। प्रश्न यह नहीं था कि दुःख किसे होता है बल्कि यह कि दुख क्यों होता है?' और इसका उत्तर है कि आप निरर्थक चर्चाओं में समय न गवाएं ऐसा करने पर आपको दुख नहीं आएगा। यह बात ठीक उसी तरह है कि किसी विष बुझे तीर से किसी को घायल कर देना और फिर बाद में उससे पूछना कि यह तीर किसने बनाया है? भाई उस तीर से लगने पर उसका उपचार जरूरी है न की निरर्थक की बातों में समय गंवाना। कई लोग कई तरह की बेतुकी बातों में समय को पानी की तरह बहा देते हैं बहते पानी को तो फिर भी सुरक्षित किया जा सकता है लेकिन एक बार जो समय चला गया उसे वापस कभी नहीं लाया जा सकता। इसलिए समय को सोच समझ कर खर्च करें। यह प्रकृति की दी हुई आपके पास अनमोल धरोहर है। -मनोज तिवारी, विकासपुरी, दिल्ली। प्रतिदिन प्रदूषण का बढ़ता प्रकोप पूरी दुनिया इस वक्त बढ़ते प्रदूषण से परेशान है। दिल्ली हो या बीजिंग। पेरिस हो या लंदन या फिर मेक्सिको सिटी। हर जगह लोग बढ़ते प्रदूषण की फिक्र में दुबले हो रहे हैं। बिगड़ते हालात से निपटने के लिए कुछ कदम भी उठाए जा रहे हैं। मसलन, दिल्ली में ऑड-इवन कार फॉर्मूले से प्रदूषण कम करने की कोशिश हो रही है। इसी तरह के प्रयोग बीजिंग, ब्रसेल्स और लंदन जैसे शहरों में भी हो रहे हैं, ताकि लोग बेहतर हवा में सांस ले सकें। लातिन अमेरिकी देश मेक्सिको की राजधानी मेक्सिको सिटी, दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर कहा जाता है। इसे ये दर्जा 1992 में संयुक्त राष्ट्र की प्रदूषण की निगरानी करने वाली संस्था ने दिया था। मेक्सिको सिटी एक पठार पर बसा हुआ है। इसके चारों तरफ ज्वालामुखी के छोटे बड़े पहाड़ हैं। चौतरफा पहाड़ों से घिरा होने की वजह से भी यहां खुली हवा कम ही आ पाती है। फिर शहर में बढ़ती गाड़ियों ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। आज शहर के 2।3 करोड़ निवासियों के लिए सांस लेने का मतलब है जहरीली हवा को अपने शरीर में भरना। इतने बुरे हालात से निपटने के लिए हाल ही में मेक्सिको सिटी ने कारों को लेकर सख्त नियम लागू किया है। इसके तहत हर कार मालिक को हफ्ते में एक दिन अपनी गाड़ी सड़क पर उतारने की पाबंदी झेलनी होगी। इसके अलावा महीने के एक शनिवार को भी कारों को घर से निकालने पर रोक लगी रहेगी। ये पाबंदी पांच अप्रैल से शुरू होकर तीस जून तक चलेगी। सरकारी और स्कूल की गाड़ियां, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कारों और सार्वजनिक वाहनों को इस पाबंदी से छूट मिली है। कारों पर पाबंदी का मेक्सिको सिटी का ये पहला तजुर्बा नहीं। पिछले तीस सालों से शहर में इस किस्म के प्रयोग चल रहे हैं। वैसे कारों पर रोक के नियम आजमाने वाला मेक्सिको सिटी कोई पहला शहर नहीं। पिछले साल 27 सितंबर को ही पेरिस में बढ़ते प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एक अभियान चलाया गया था। इसमें लोगों को कारों को छोड़कर साइकिल जैसे प्रदूषण न फैलाने वाले वाहनों का इस्तेमाल करने के लिए हौसला दिया गया। खुद पेरिस को ये मिसाल पड़ोसी देश बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स से मिली, जहां पर रविवार का दिन कार-फी घोषित किया गया है। वैसे ब्रसेल्स या पेरिस में तो ये अभियान लोगों को प्रदूषण के खतरों से आगाह करने के लिए चलाए गए। वहीं मेक्सिको में तो कारों पर पाबंदी का नियम, प्रदूषण को कम करने के लिए लागू किया गया है। पिछले महीने ही वहां हालात इतने बिगड़ गए थे कि प्रदूषण की निगरानी करने वाली संस्था को इमरजेंसी का एलान करना पड़ा था। शहर की 47 लाख में से 11 लाख गाड़ियों पर हमेशा के लिए रोक लगा दी गई थी। साथ ही लोग कार से न चलें, इसके लिए सरकारी बसों और मेट्रो में मुफ्त में सफर करने का ऑफर भी दिया गया। भारत में भी इस तरह के तजुर्बे किए जा रहे हैं। इसी साल, जनवरी में दिल्ली में ऑड-इवन फॉर्मूला लागू किया गया, पंद्रह दिन के लिए। अब अप्रैल में दोबारा ये प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए ही 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी ऑटो और बसों को पेट्रोल-डीजल के बजाय सीएनजी से चलाने का आदेश दिया था। अभी हाल ही में दस साल से ज्यादा पुरानी डीजल गाड़ियों को दिल्ली में चलाने पर रोक लग गई है। साथ ही ज्यादा ताकतवर इंजन वाली डीजल गाड़ियों का लाइसेंस जारी करने पर भी अदालत ने पाबंदी लगा दी है। खुद सरकार ने नई गाड़ियों की खरीद पर चार फीसद सेल्स टैक्स लगा दिया है, ताकि लोग कम गाड़ियां खरीदें। इन सबका मकसद, सड़क पर उतरने वाली गाड़ियां कम करके प्रदूषण में कमी लाना है। चीन की राजधानी बीजिंग भी खराब हवा और धुंध के लिए बदनाम है। वहां भी हालात सुधारने के लिए प्रशासन ने कई प्रयोग किए हैं। 2008 के ओलंपिक से पहले बीजिंग में गाड़ियों को एक दिन के अंतर पर निकालने का नियम लागू किया गया था। पिछले साल विक्ट्री डे परेड से पहले भी ये नियम लागू किया गया। इससे बीजिंग के प्रदूषण में काफी कमी आई थी। मगर ये फौरी ही थी। जैसे ही पाबंदी हटी, वैसे ही बीजिंग का नीला आसमान फिर धुंध में लिपटा नजर आया। प्रदूषण कम करने के लिए लंदन में 2003 में ही कंजेशन चार्ज लगाया गया था। पहले ये पांच पाउंड या करीब पांच सौ रुपए हुआ करता था। आज ये साढ़े ग्यारह पाउंड या करीब बारह सौ रुपए बैठता है। इससे ब्रिटिश सरकार को अरबों रुपए मिले हैं। इन पैसों से शहर के ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर बनाया गया है। प्रदूषण की निगरानी करने वाली संस्था के मुताबिक, इससे लंदन की हवा में जहरीली गैसों की तादाद भी कम हुई है। इन्हीं कामयाबियों को देखकर मेक्सिको सिटी ने भी कारों पर पाबंदी का नियम लागू किया है। जून के बाद वहां बारिश का सीजन आ जाएगा। जिससे प्रदूषण में और कमी आने की उम्मीद है। इसी तरह दिल्ली को भी ऑड-इवेन फॉर्मूले से प्रदूषण से राहत मिलने की उम्मीद जगी है। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद। यह बातें, खुश रहने के लिए जरूरी है! खुश रहना हर कोई चाहता है लेकिन अक्सर हम परेशान रहते हैं। चिंता और तनाव हर किसी की जिंदगी में आते है, जरूरी यह होता है कि हम उनसे कैसे निपटते हैं। आइए आज आपको खुश रहने के कुछ सरल टिप्स बताते हैं। सबसे अधिक जरूरी है आपका मुस्कुराना। परिस्थिति चाहे जैसी हो आपके चेहरे पर एक मुस्कान सजी रहेगी तो हर मुश्किल आसान लगने लगेगी। जिसका काम अच्छा लगे उससे प्रेरणा लें। अखबार के अलावा किताबें पढ़ने की आदत डालें। हर व्यक्ति में अच्छी और बुरी बातें होती है आप उसमें क्या देखते हैं और क्या सीखते हैं यह आप पर ही तो निर्भर करता है। -राजन गुप्ता, नरेला, दिल्ली।      

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